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जुते की चाहना


जुते की चाहना

चाह नहीं मैं नेता मंत्री के
ऊपर फेंका जाऊँ,

चाह नहीं प्रेस कान्फ्रेंस में
किसी पत्रकार को ललचाऊँ,

चाह नहीं, किसी समस्या के लिए
हे हरि, किसी के काम आऊँ

चाह नहीं, मजनूं के सिर पर,
किसी लैला से वारा जाऊँ!

मुझे पहन कर वनमाली!
उस पथ चल देना तुम,
संसद पथ पर देस लूटने
जिस पथ जावें वीर अनेक।

(श्रद्धेय माखनलाल चतुर्वेदी की आत्मा से क्षमायाचना सहित,)

One Invention Change The World - हमारी दुनिया बदल दी एक हाथ से चलने वाले प्रिंटिंग प्रेस ने




अगर में आप से पुछु के पीछले 
1000 सालमे कोन से आविष्कार ने हमारी दुनिया बदल दी

आप कहेगे की बिजली , फोन ,या टेलीविजन
नहीं इन मेसे कोय भी नहीं


 
हमारी दुनिया बदलदी एक हाथ 
से चलने वाले प्रिंटिंग प्रेस ने 
 
ये आविष्कार तब हुवा था जब आप इस दुनिया में नहीं थे
आप के दादा भी नहीं थे उनके दादा भी नहीं थे
तो आप पूछे गे के आप को केसे पता चला
उनके प्रिंटिंग प्रेस के वजह से ही तो पता चला

ये बात हे 1400 साल में जन्मे जोहान Gutenberg की
उस समय सभी किताबे हाथो से लिखी जाती थी

1436 में जोहानिस Gutenberg नें अपने प्रेस में निर्माण शुरू किया
लकडी के ब्लॉक बनाये और हाथोसे प्रेस कर के प्रिंटिंग कर ता था
ब्लॉक पत्रों की तुलना में बेहतर थे

जोहान Gutenberg को पता नहीं था कि उसने क्या आविष्कार किया हे वो तो बिचारा 3 फ़रवरी, 1468 Mainz, जर्मनी में गरीबी में मर गया पर उनके आविष्कार ने पूरी दुनिया बदल दी

एक सदी से दूसरी सदी की जान कारिया हमारे पास पहुची किताबो से हम आज जो कुछ भी जानते हे सब किताबो में सग्रहीत था
विद्युत शक्ति के आविष्कारक थॉमस अल्वा एडीसन जन्म हुवा 11 फ़रवरी 1847 उसने भी किताबे से ही जानकारी हासिल की या रेडियो के आविष्कारक मारकोनी , फोन के आविष्कारक ग्राहम बेल , अल्बर्ट आइंस्टीन, 1921 सभी ने किताबो कि मदद ली ये सीखा कि नहीं आये थे

Johannes Gutenberg इतिहास सब से बड़ा आविष्कारक जो मरने तक गरीब रहा
उसे मेरा सलाम

Johannes Gutenberg ( johaan Gutenberg )
जन्म: c1400 Mainz, जर्मनी में
मौत: 3 फ़रवरी, 1468 Mainz, जर्मनी में
राष्ट्रीयता: जर्मन

अभाव के कारण


इजिप्त के राजा ने सुना की कोईँ आदमी अकेला रहेगा
सब तरह से स्वस्थ होगा फिर भी वह पागल हो जायेगा
तो राजा ने एक स्वस्थ युवक जो सब तरह सुखी था अकेले में रखा दिया

उस से कोईँ भी न मिल सके एसी व्यवस्था कर दी गए
उसकी सब सुविधा का ध्यान रखा जाता था
पर वो युवक दो तीन दिन बात बात पर बड़ा परेशान रहेने लगा
चिल्लाने लगा गुस्सा होने लगा


एक सप्ताह के बाद वो वहाँ पे रहेने को राजी हो गया
यानि के वो अब शांति से रहे ने लगा
और एक महीने के बाद वो युवक अपने आप से बाते कर ने लगा
पागल पन के कुछ लक्ष्ण दिखाय देने लगे
और तिन महीने बाद वो पागल हो गया


कोई भी आदमी अपने भीतर से बचने केलिए नशा करने लगता हे , भजन , कीर्तन करने लगता हे
माला फेरने लगता हे फिल्म ,टीवी , न्यूज़ पेपर इन सभी में
हम सारे लोग खुद को भुल ना चाहते हे .
भीतर की रिक्त ता को भुला देना चाहते हे
बड़ा पद , धन येसब अपने से बचने के बहाने हे

बहार की दोड़ भीतर की रिक्त ता को नहीं भर पाती
अभाव को भर के के लिए हम मित्र खोजते हे , सभा में जाते चाहे वो किसी की भी हो चुनावी , धार्मिक , जहा लोगो की भीड़ हो ताकि हम अपने से बच सके , संगीत सुनते हे , धर्म के नाम पर जगडें करते हे एतिहास में जितने युध्ध हुए वे सब दुसरे किसी कारण नहीं भीतर के अभाव के कारण हुए हे

जिंदगी के सारे प्रश्नों की जड़ ही अन्दर का अभाव हे
आप भी खुदके पास 30 मिनिट बैठ के देखे

नहीं बैठ पायेगे उब के भाग जाये गे
या फिर कोई बाहाना बना लेगे .........आज नहीं कल और कल कभी आता नहीं


हिटलर


जो असत्य बार बार प्रचलित किया जाता हे ।
वो सत्य प्रतीत होने लगता हे ...
हिटलर

हिटलर ने यही किया


किसी भी जुठ को बार बार दोहरा नेसे सच मालूम पड़ ने लगता हें ।

प्यास ( Receptivity )


एक गाँव में एक हजार के करीब बस्ती थी जहा से एक फ़कीर का निकलना हुआ
तो गाँव के एक आदमीने फ़कीर से पुछा की

आप लोगो को मंदिर के सबंध में सत्य के सबंध में समजाते हे
कितने ही लोगो को समजाया होगा मगर उस मेसे किसी को सत्य मिला , मोक्ष मिला .....?


फ़कीर ने कहा आप मुझे कल सुबह मिलने आना


वह सुबह फ़कीर से मिले गया । तो फ़कीर ने कहा तु गाँव में जाओ

और गाँव में सभी आदमियों की आकाँक्षा क्या हे वो जान के सूचि बनाकर लेआना
वह आदमी गाँव में गया और सब से पूछा की आपकी क्या इच्छा हे क्या
आकाँक्षा हे किसीने धन माँगा किसी ने पद , ज़मीन जायदाद , ........


वो आदमी सूचि बना कर फ़कीर के पास आया उसने फ़कीर को सूचि बताए
फ़कीर ने कहा इसमे से कोय भी सत्य नहीं चाह्ता तो में उसे नहीं दे सकता


में लोगो को पानी दे सकता हु प्यास नहीं

अगर आपके भीतर प्यास नहीं हे
तो कुवे पर भी हम खड़े हो जाये तो भी

पानी नही दिखेगा पानी उसे दिखाय देगा जो प्यासा हे


आप को क्या चाहीये सूचि में लिखवा दीजीये॥


आप कोभी मिलेगा पर प्यास ( Receptivity ) होनी जरुरी हे ।

धनपती



एक धनपति बीमार था . मरन सया पर था जीवन भर धन की दोड़ रही थी वह मर रहा था .
आखरी क्षण आँख खुली उसने कहा बड़ा लड़का कहा हे उसकी पत्नि ने कहा आप के पास ही हे !
उसके पाच लड़के थे बारी बारी सब को पुछा तो पत्नि को अच्छा लगा ,

क्योकि आज तक किसी के बारे में पुछा ही नहीं था ! पत्नि ने कहा सभी आप के पास ही हे .
तो धनपती ने कहा सभी यहा पे हे तो फिर दुकान पर कोंन हें .
जो व्यक्ति धन में जितना आतुर होगा उतना प्रेम कम होगा
ये बिलकुल आनिवार्य हें ।


जीवन में जितना प्रेम होगा उतना धन पर पकड़ कम हो जायेगी
आप देखे आप के पास किस की ज्यादा पकड हें ..........

बेचेनी


राह पर तुम खड़े हो एक सुंदर कार निकली ...
क्या हुआ आप के मनको ? कार का प्रतिबिब गूंजा कार के निकल नेसे कुछ नहीं होता
अगर आप का देखना तटस्थ हो जेसे केमरे की आखा होती हे
लेकिन जब वो कार तुम्हारे भीतर से निकल रही हे ,-- ऐसी कार मेरे पास हो ! लहर उठी
जेसे पानी में किसीने कंकड़ फेका और लहर उठी । कार तो जा चुकी , अब लहर तुम्हारे साथ हे .

अब वो लहेरे तुम हे चलाएगी .
तुम धन कमाने में लगोगे , या तुम चोरी करने में लगोगे , या किसी की जेब काटोगे .
अब तुम कुछ करोगे . अब वृति तुम्हारी कभी क्रोध करवाएगी ,अगर कोई बाधा डालेगा . अगर कोय मार्ग में आएगा तो तुम
हिंसा करनेको उतारू हो जाओगे , अगर कोय सहारा देगा तो तुम मित्र हो जाओगे , अब
तुम्हारी राते इसी सपने से भर जायेगी . बस यह कार तुम्हारे आसपास धूम ने लगेगी .
जब तक यह न हो जाए , तुम्हे चेन न मिलेगा
और मजा तो येहे की वर्षो की महेनत के बाद जिस् दिन यह कार तुम्हारी हो जायेगी , तुम अचानक पाओगे , कार तो अपनी हो गयी , लेकिन अब ? इन वर्षो की बेचेनी का अभ्यासः हो गया . अब बेचेनी नहीं जाती , क्योकि बेचेनी का अभ्यासः हो गया
अब तुम इस बेचेनी के लिए नया कोई यात्रा पथ खोजेगे . बड़ा मकान बनाना हे ! हीरे - जवाहरात खरीदने हे ! अब तुम कुछ और करो गे , क्योकि अब बेचेनी आदत हो गयी , लेकिन अब कार का मिलना न मिलना बराबर हे . अब बेचेनी पकड़ गयी .
चेन से न रह सके , सोच की धनि जब धनि हो जायेगे तब चेन से रह लेगे . अगर बेचेनी का अभ्यास घना हो गया , तो धनि तो तुम हो जाओगे , बेचेनी कहा जाएगी ? तब और धन की दोड़ लगती हे और मन कहेता हे और धनी हो जाए फिर . लेकिन सारा जाल मन का हे
आप भी देखो कही बेचेनी ने तो नहीं पकडा हे
रोज सुबह उठा के भागने का तो मन नहीं करता हे .................

सम्राट बनो

एक फकीर हुआ, उस फकीर के पास एक सम्राट गया। सूफी फकीर था। उस सम्राट ने कहा कि मुझे भी परमात्मा से मिला दो। मैं भी बड़ा प्यासा हूं। उस फकीर ने कहा, तुम एक काम करो। कल सुबह आ जाओ। तो वह सम्राट कल सुबह आया। और उस फकीर ने कहा, अब तुम सात दिन यहीं रुको। यह भिक्षा का पात्र हाथ में लो और रोज गांव में सात दिन तक भीख मांग कर लौट आना, यहां भोजन कर लेना, यहीं विश्राम करना। सात दिन के बाद परमात्मा के संबंध में बात करेंगे। सम्राट् बहुत मुश्किल में पड़ा। उसकी ही राजधानी थी वह। उसकी अपनी ही राजधानी में भिक्षा का पात्र लेकर भीख मांगना। उसने कहा कि अगर किसी दूसरे गांव में चला जाऊं ? तो उस फकीर ने कहा, नहीं गांव तो यही रहेगा। अगर सात दिन भीख न मांग सको तो वापस लौट जाओ। फिर परमात्मा की बात मुझसे मत करना।



सम्राट झिझका तो जरूर, लेकिन रुका। दूसरे दिन भीख मांगने गया बाजार में। सड़कों पर, द्वारों पर खड़े होकर उसने भीख मांगी। सात दिन उसने भीख मांगी। सात दिन के बाद फकीर ने उसे बुलाया और कहा, अब पूछो। उसने कहा, अब मुझे कुछ भी नहीं पूछना। मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि यह सात दिन भिक्षा का पात्र फैला कर मुझे परमात्मा दिखाई पड़ जाएगा। फकीर ने कहा, क्या हुआ तुम्हें ? उसने कहा, कुछ भी नहीं हुआ। सात दिन भीख मांगने में मेरा अहंकार गल गया और पिघल गया और बह गया। मैंने तो कभी सोचा ही नहीं था कि जो सम्राट् होकर न पा सका, वह भिखारी होकर मिल सकता है। और जिस क्षण विनम्रता का भीतर जन्म होता है, ह्युमिलिटी का, उसी क्षण सच्चा सम्राट् पैदा होता हे

आप भी देखे परमात्मा और आप के बिच अहंकार तो नही , पर उसे पहेले आप को सम्राट होना पड़ेगा भिखारी कभी परमात्मा खोजने नही जाएगा उसे अभी बहोत सी प्यास बुजनी बाकि हे मकान , गाड़ी , पैसा , यस , वो सब आप पालो अपनी प्यास बूजा लो ..........


सम्राट वो हे जिस की सभी प्यास बुज चुकी हो ।


तभी तो राम , बुद्ध, महावीर , जीसस , महम्मद पैगम्बर , नानक , कबीर , जेसे सम्राटो ने दुनिया बदल दी.....


हवाई जहाज या बैलगाड़ी


दूसरे महायुद्ध बर्मा के एक जंगल में एक छोटा हवाई जहाज छूट गया । जंगल में रहने वाले आदिवासी हवाई जहाज का क्या करें ! हवाई जहाज है, यह भी उसकी समझ में न आए। वे तो बैलगाड़ी को ही जानते थे, सो न्होंने हवाई जहाज में बैल जोत लिए, सोचा कि नए ढंग की बैलगाड़ी है। और बैल जोत कर उससे काम लेने लगे। छोटा-सा हवाई जहाज था, होगा दो साट का हवाई जहाज, तो उसमें बैल जोत कर और उसको चलाने भी लगे। महीनों हवाई जहाज बैलगाड़ी ही रहा। तुम उस हवाई जहाज की दुर्दशा समझो। अगर हवाई जहाज को जरा भी होश होता तो जार-जार रोता, तो उसकी आंखों में आंसू टपकते कि यह मेरी क्या गति हो रही है ! इसके लिए मैं बना हूं ? ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर...बैल जुते हवाई जहाज में। मूढ़ों के हाथ में पड़ा जाएगा तो यही होना था।


फिर शहर से कोई आदमी आया। उसे भी हवाई जहाज का भाव अनुभव तो नहीं था, लेकिन बस और ट्रक उसने देखे थे। उसने कहा कि यह तुम क्या कर रहे हो ! इसमें बैल जोतने की जरूरत नहीं है। यह तो चोटी बस है।उसने कोशिश करके चलाने की चेष्टा की, दो –चार दिन में चल गया हवाई जहाज। तो बस की तरह कुछ दिन चला आदिवासी बहुत प्रसन्न हुए कि बिना बैल के गाड़ी चल रही है; बैल नहीं है गाड़ी चल रही है ! देखने आते आदिवासी दूर-दूर से। फिर उस आदमी ने जब शहर गया तो वहां लोगों को कहा कि ऐसा-ऐसा मामला हुआ, तब किसी ने उससे कहा कि पागल, वह बस नहीं है। तू जैसा वर्णन कर रहा है, वह हवाई जहाज है।


तो एक पायलट को लेकर वह आदमी जंगल पहुंचा और तब हवाई जहाज आकाश में उड़ सका। तब तो आदिवासियों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
हमारी हालत भी कुछ इसी ही हे हमारा जीवन हे हवाई जहाज
हम बैलगाड़ी ही बनाए हुए हैं उसे। घसीटते रहे हैं।


हम बने ही है आकाश में उड़ने को। न उड़े आकाश में तो फिर पैर घसीट कर ही चलना पड़ेगा। जमीन पर ही चलते रहेना हमारे के स्वभाव के प्रतिकूल है, अनुकूल नहीं। इसलिए जीवन इतना बोझिल है, इतना भारग्रस्त है।जीवन में दुख का एक ही अर्थ है कि हम स्वभाव के अनुकूल नहीं हैं, प्रतिकूल हैं।


दुःख सूचक है कि हम स्वभाव से चूक रहे हैं; कहीं हम मार्ग से उतर गए हैं; कही पटरी से उतर गए हैं। जैसे ही स्वभाव के अनुकूल होंगे, वैसे ही आनंद, वैसे ही अमृत की वर्षा होने लगेगी, लेकिन मनुष्य के पंख पक्षियों जैसे पंख नहीं हैं कि प्रकट हों; अप्रकट हैं। देह के नहीं चैतन्य के हैं। जिस आकाश की बात चल रही है, वह बाहर का आकाश नहीं, भीतर का आकाश है—अंतराकाश है जैसा आकाश बाहर है, वैसा ही आकाश भीतर भी है—इससे भी विराट, इससे भी विस्तीर्ण, इससे भी अनंत-अनंत गुना बड़ा। बाहर के आकाश की तो शायद कोई सीमा भी हो। वैज्ञानिक अभी निश्चित नहीं हैं कि सीमा है या नहीं।
दूसरे महायुद्ध बर्मा के एक जंगल में एक छोटा हवाई जहाज छूट गया जंगल में रहने वाले आदिवासी हवाई जहाज का क्या करें ! हवाई जहाज है, यह भी उसकी समझ में आए। वे तो बैलगाड़ी को ही जानते थे, सो उन्होंने हवाई जहाज में बैल जोत लिए, सोचा कि नए ढंग की बैलगाड़ी है। और बैल जोत कर उससे काम लेने लगे। छोटा-सा हवाई जहाज था, होगा दो साट का हवाई जहाज, तो उसमें बैल जोत कर और उसको चलाने भी लगे। महीनों हवाई जहाज बैलगाड़ी ही रहा। तुम उस हवाई जहाज की दुर्दशा समझो। अगर हवाई जहाज को जरा भी होश होता तो जार-जार रोता, तो उसकी आंखों में आंसू टपकते कि यह मेरी क्या गति हो रही है ! इसके लिए मैं बना हूं ? ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर...बैल जुते हवाई जहाज में। मूढ़ों के हाथ में पड़ा जाएगा तो यही होना था।






फिर शहर से कोई आदमी आया। उसे भी हवाई जहाज का भाव अनुभव तो नहीं था, लेकिन बस और ट्रक उसने देखे थे। उसने कहा कि यह तुम क्या कर रहे हो ! इसमें बैल जोतने की जरूरत नहीं है। यह तो चोटी बस है।उसने कोशिश करके चलाने की चेष्टा की, दोचार दिन में चल गया हवाई जहाज। तो बस की तरह कुछ दिन चला आदिवासी बहुत प्रसन्न हुए कि बिना बैल के गाड़ी चल रही है; बैल नहीं है गाड़ी चल रही है ! देखने आते आदिवासी दूर-दूर से। फिर उस आदमी ने जब शहर गया तो वहां लोगों को कहा कि ऐसा-ऐसा मामला हुआ, तब किसी ने उससे कहा कि पागल, वह बस नहीं है। तू जैसा वर्णन कर रहा है, वह हवाई जहाज है।






तो एक पायलट को लेकर वह आदमी जंगल पहुंचा और तब हवाई जहाज आकाश में उड़ सका। तब तो आदिवासियों के आश्चर्य का ठिकाना रहा।






हमारी हालत भी कुछ इसी ही हे हमारा जीवन हे हवाई जहाज



हम बैलगाड़ी ही बनाए हुए हैं उसे। घसीटते रहे हैं।



हम अनंत संपदा के मालिक हे



क्या होने को आए थे, क्या हो गए हो !






हम बने ही है आकाश में उड़ने को। उड़े आकाश में तो फिर पैर घसीट कर ही चलना पड़ेगा। जमीन पर ही चलते रहेना हमारे स्वभाव के प्रतिकूल है, अनुकूल नहीं। इसलिए जीवन इतना बोझिल है, इतना भारग्रस्त है।जीवन में दुख का एक ही अर्थ है कि हम स्वभाव के अनुकूल नहीं हैं, प्रतिकूल हैं।






दुःख सूचक है कि हम स्वभाव से चूक रहे हैं; कहीं हम मार्ग से उतर गए हैं; कही पटरी से उतर गए हैं। जैसे ही स्वभाव के अनुकूल होंगे, वैसे ही आनंद, वैसे ही अमृत की वर्षा होने लगेगी, लेकिन मनुष्य के पंख पक्षियों जैसे पंख नहीं हैं कि प्रकट हों; अप्रकट हैं। देह के नहीं चैतन्य के हैं। जिस आकाश की बात चल रही है, वह बाहर का आकाश नहीं, भीतर का आकाश हैअंतराकाश है जैसा आकाश बाहर है, वैसा ही आकाश भीतर भी हैइससे भी विराट, इससे भी विस्तीर्ण, इससे भी अनंत-अनंत गुना बड़ा। बाहर के आकाश की तो शायद कोई सीमा भी हो। वैज्ञानिक अभी निश्चित नहीं हैं कि सीमा है या नहीं।
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