ओस्पेन्सकी ने गुरजिएफ से मिलनेसे पहेले एक बहोत कीमती किताब " टशियम आरगेनम " लिख चुकाथा पश्चिम के ईतीहास में लिखी गयी तीन किताबो में एक महत्वपुणँ किताब हे । और गुरजिएफ को कोय जानता भी नहीं था एक अनजान फ़कीर था जब ओस्पेन्सकी मिलने गया गुरजिएफ से कोय बीस मित्रो के साथ चुपचाप बेठा हुआ था । ओस्पेन्सकी भी थोडी देर बेठा फिर घबडाया न तो किसी ने परिचय कराया की कोन हे न गुरजिएफ ने पुछा की केसे आये हो बाकि जो बीस लोग थे वह भी चुपचाप बैठे थे तो चुपचाप ही बैठे रहे । पाच सात मिनिट के बाद ओस्पेन्सकी बेचनी बहोत बढ़ गयी । न वहा से उठा सके न बोल सके आखिर हिम्मत जुटाकर उसने कोई बीस मिनिट तक तो बर्दास्त किया , फिर उसने गुरजिएफ से कहा की माफ़ करिये यह क्या हो रहा हे ? आप मुझसे यह भी नहीं पूछते की में कोन हु ?
गुरजिएफ ने आंखे उठा कर ओस्पेन्सकी की तरफ देखा और कहा , तुमने खुद कभी अपने से पुछा हे की में कोन हु और तुम ने ही नहीं पूछा , तो मुझे क्यों कष्ट देते हो ? या तुम्हे अगर पता हो की तुम कोन हो तो बोलो । तो ओस्पेन्सकी के निचे से जमीन खिसकती मालूम पड़ी अब तक तो सोचा था की पता हे की में कोन हु ओस्पेन्सकी ने सब तरह से सोचा कही कुछ पता न चला की में कोन हु ? ।
गुरजिएफ ने कहा बेचनी में मत पडो कुछ और जानते होतो उस संबंध में ही कहो । कुछ नहीं सूझा तो गुरजिएफ ने एक कागज उठाकर दिया और कहा . हो सकता हे संकोच होता हो पास के कमरे में चले जाओ इस कागज पर लिख लाओ जो -जो जानते हो उस संबंध में फिर हम बात न करेगे और जो नहीं जानते हो उस संबंध में कुछ बाते करेगे ओस्पेन्सकी कमरे में गया उसने लिख हे सर्द रात थी लेकिन पसीना मेरे माथे से बहना शुरू हो गया पहेली दफा में पसीने - पसीने हो गया पहेली दफा मुझे पता चला की जानता तो में कुछ भी नहीं हु . सब शब्द मेरी आंखो में धूम ने लगे और मेरे ही शब्द मुझसे कहेने लगे
ओस्पेन्सकी तुम जानते क्या हो .......
और तब इसने वह कोरा कागज ही लाकर गुरजिएफ के चरणो में रखा दिया और कहा में कुछ नहीं जानता गुरजिएफ ने कहा अब तू जान ने की और कदम उठा सकता हे ।
आप क्या जानते हे ..... ?
No comments:
Post a Comment