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स्वबोध के बिना आजादी नहीं मिलती

तानसेन सम्राट अकबर के नवरत्नों में भी गिना जाता है एक दिन अकबर ने तानसेन से पूछा तानसेन तुम इतना अच्छा संगीत बजाते हो तुम्हारा कोय जवाब नहीं पर बाद में मुझे ये भी ख्याल आता हे के तुम ने भी किसी से ये सिखा होगा तुम इतना सारा नया संगीत किस कुवे से निकाल लाते हो मुझे ये जानना हे
तानसेन ने कहा की ये मेरे गुरु हरिदास से मेने सिखा हे अकबर ने कहा तो आप अपने गुरु को मेरे दरबार में बुलावो में उसका संगीत सुनना चाहता हु तानसेन ने कहा आप मुझे माफ़ करे पर उसे में नहीं ला सकता वो अपनी मर्जी के मालिक हे उसे जब मोज आती हे तब वह संगीत बजाते हे पर आप को संगीत सुनना हे तो हमें उसके पास जाना होगा पर सम्राट बनके गए तो कभी उसका संगीत नहीं सुन पायेगे . रात के अँधेरे में तानसेन और अकबर जंगल में जहा पर उसके गुरु रहेते थे वहा गये इंतजार करने लगे सुबह होने को थी तब तानसेन के गुरु हरिदास ने संगीत बजाना सुरु किया अकबर इतने आनंद से भर गये और तानसेन से कहा की तुम तो इसके आगे कुछ भी नहीं

तब तानसेन ने कहा जहां पनाह इसलिए तो में आप को जंगल में लाया ताकि आप देख सको एक गुलामी और आजादी में क्या फर्क होता हे में आप का गुलाम हु आप जब कहो तब संगीत बजता हु मेरा मन होया न हो और मेरे गुरु आजाद हे वह सिर्फ अपने लिए गाते - बजाते हे जब उसकी मोज

आप भी कोय भी काम अच्छा से अच्छा करो पर जब तक गुलामी की जंजीर आपके पैर हे तब तक वह सुगध नहीं आएगी जो आजादी में आती हे

स्वबोध के बिना आजादी नहीं मिलती
पूछो अपने आप से

Who Am I

उतर मिलेगा

अद्रश्य व्यापार






परमात्मा हें अद्रश्य
अब अद्रश्य के साथ आप कुछ भी कर सकते हो
उसे बेच भीं सकते हो



अमेरिका में एक दुकान पर अद्रश्य हेरपिन बिकते थे अद्रश्य !
तो स्त्रीया तो बड़ी उत्सुक होती हे अद्रश्य हेर पिन !
दिखाय भी न पड़े और बालो में लगा भी रहे ,
बड़ी भीड़ लगती थी , कतारे लगती थी
एक दिन एक ओरत पहुची ,उसने डब्बा खोलकर देखा ,
उसमे कुछ था तो नहीं
उसने कहा इसमे हें भी ?
थोडा संदेह उसे उठा ,
उसने कहा के अद्रश्य !
माना कि अद्रश्य हे उनको ही लेने आए हु ,
लेकिन पक्का इसमे हे ,
और ये किसी को दिखाय भी नहीं पड़ता
उस दुकानदार ने कहा
कि तू मान न मान , आज महीने भर से तो स्टोक में नहीं हे
फिर भी बिक रहा हे ,
पंडित पुरोहित नहीं बता ते
अब ये अद्रश्य हेर पिन की कोय स्टोक में होने की जरुरत थोड़े ही हें


परमात्मा का
धंधा कुछ अद्रश्य का हें ,
कोई और तरह कि दुकान खोलो तो सामान बेचना पड़ता हें ,
कोय और तरह का धंधा
कितना ही धोखा दो , कितना ही कुशलता से दो
पकडे जाओगे लेकिन परमात्मा बेचो ,

कोन पकडेगा ? केसे पकडेगा ?

सदिया बीत जाती हें बिना स्टोक के बिकता हें

मुल्ला नसरुदीन के घर में चोर



मुल्ला नसरुदीन के घर में एक रात चोर घुसे . चोर बड़े सम्हल कर चल रहे थे , लेकिन मुल्ला एकदम से झपट कर अपने बिस्तर से उठा , लालटेन जला कर उसके पीछे हो लिया . चोर बहोत घबडाये उसने मोका ही नहीं दिया भागने का वह ठीक दरवाजे पर खडा हो गया लालटेन तें लेकर चोर में कहा भाई तुम तो सो रहे थे , एक दम नीद से केसे उछल पड़े ?



मुल्ला ने कहा , घबडाओ मत चिंता न लो भागने की जल्दी न करो अरे में तो सिर्फ तुम्हे सहायता देने के के लिए लालटेन जला कर ... अँधेरे में केसे खोजोगे ? तीस साल हो गए इस घर में खोजते हुए एक कोडी नहीं मिली और तुम अँधेरे में खोज रहे हो , मेने दिन के उजाले में खोजा इसलिए लालटेन जला कर तुम्हारे साथ आता हु ; अगर कुछ मिल गया , बाट लेगे .


आप के घर में कभी चोर आये ये हे .... उनकी थोडी मदद कर ना

आप को भी कुछ मिल जाये




WellCome

गधे से शादी


दो गधे धुप में खड़े थे एक गधा बड़ा प्रसन्न हो रहा था , दुलती झाड़ रहा था और लोट रहा था दुसरे ने पूछा बड़े आनंदित हो ,बड़े मस्त हो ,बात क्या हे ? सदा तुम्हे उदास देखा , आज बड़े आनंदमग्न हो रहे हो बात क्या हे ?
उसने कहा की बस अब मजा ही मजा हे , आ गई सोभाग्य की घडी जिसकी प्रतिक्षा थी . दुसरे गधे ने पूछा की हुआ क्या , कुछ कहो भी ! पहेली न उलझाओ और सीधी - सीधी बात कहो .

बात ये हे की में जिस धोबी का गधा हु , उसकी लड़की जवान हो गई हे ! दुसरे गधे ने कहा : लेकिन उसकी लड़की जवान होने से तुम क्यों मस्त हो रहे हों ? उसने कहा तू सुन तो पहेले मेरी बात . जब भी लड़की कुछ भूल चुक करती हे तो धोबी गुस्से में आ जाता हे और कहेता हे की देख अगर तुने ठीक से काम न किया तो गधे से शादी कर दुगा . अब बस दिन - दो दिन की बात हे किसी भी दिन , जिस दिन लड़की ने कोई भूल की और धोबी गुस्से में आ गया .. और तुम तो जानते ही हों मेरे मालिक को के केसा गुस्से में आता हे जब मुझ पर गुस्से में आ जाता हे तो एसे डंडे फटकारता हे ... की जिस दिन भी जोश में आ गया उस दिन यह शादी हुई ही हुई हे . तब सोभाग्य का दिन आ गया . मगर तुम उदास न होओ , बारात में तुम हे भी ले चलेगे .


ज्यादा तर एसे ही हमने अपने जीवन में सपने पाल रखे हे .

कही आप ने भी तो .............................?

जीवन भर श्रम की कीमत दो कोडी !


सिकंदर से एक फ़कीर ने कहा की तुने इतना बड़ा साम्राज्य बना लिया , इसका कुछ सार नहीं , में इसे दो कोडी का समजता हु . सिकंदर बहोत नाराज हो गया . उसने उस फ़कीर को कहा इसका तुम्हे ठीक -ठीक उतर देना होगा , अन्यथा गला कटवा दुगा तुमने मेरा अपमान किया हे मेरे जीवन -भर का श्रम और तुम कहेते हो इसकी कीमत कुछ भी नहीं दो कोडी !


उस फ़कीर ने कहा तो फिर ऐसा समझो की ऐक रेगिस्तान में तुम भटक गए हो प्यास लगी जोर की तुम मरे जा रहे हो में मोजूद हु मेरे पास मटकी हे पानी भरा हुआ हे स्वच्छ ! लेकिन में कहेता हु की एक गिलास पानी दुगा ,लेकिन कीमत लूँगा ! अगर में आधा साम्राज्य तुम से मांगू , तुम दे सकोगे ?


सिकंदर ने कहा की अगर में मर रहा हु और प्यास लगी हे तो आधा क्या में पूरा दे दूंगा ! तो उस फ़कीर ने कहा , बात ख़तम हो गयी , ऐक गिलास कीमत .... ऐक गिलास पानी कीमत हे तुम्हारे साम्राज्य की ! और में कहेता हु , दो कोडी ! दो कोडी भी नहीं क्योकि पानी तो मुफ्त मिलता हे !


रेगिस्तान में अपना जीवन बचाने केलिए आप ऐक ग्लास पानी की कीमत कितनी देगे ?

सपने अपने अपने


एक कुता झाड़ के निचे बेठा था सपना देख रहा था आखे बंद थी और बड़ा आनंदित हो रहा था और बड़ा डावाडोल हो रहा था मस्त था एक बिल्ली जो व्रुक्ष के ऊपर बेठी थी उसने कहा की मेरे भाई , जरुर कोई मजेदार धटना धट रही हे . क्या देख रहे हो ?

' सपना देख रहा था बाधा मत डाल ' कुत्ते ने कहा , सब ख़राब कर दिया बिच में बोलकर , बड़ा गजब का सपना आ रहा था एकदम हड्डिया बरस रही थी वर्षा की जगह हड्डिया बरस रही पानी नहीं गिर रहा था चारो तरफ हड्डिया ही हड्डिया !

बिल्ली ने कहा ' मुरख हे तू ! हमने भी शास्त्र पढ़े हे , पुरखो से सुना हे , की कभी कभी वर्षा में पानी नहीं गिरता , चूहे बरसते हे . लेकिन हड्डिया ? किसी शास्त्र में नहीं लिखा हे .

इसी बात पर दोनों की लडाय हो गई और आज तक पूरी नहीं हुई
कुतो के शास्त्र अलग , बिल्लीयो के शास्त्र अलग . सब शास्त्र हमारी वासनाओ के शास्त्र हे

आप भी सपने देखते हो ! .......
फिर लडाय भी होती हे तो फिर आप के शास्त्र अलग होगे

जिन्दगी का हिसाब किताब



एक साल में 365 दिन

दस साल में 3650 दिन
सो साल में 36500 दिन



अब मुश्किल से हम 80 साल तक जीते हे 80 साल के दिन हुये 29200 उस में से आधे दिन तो निद्रा और भोजन में चले जाते हे बाकि बचे 14600 अ़ब जो भी माया जाल हे वह इतने ही दिनों में करनि हे संपति , जमीन, पद , अब आप को एक दिन में कितने Rs बनाये तो आप करोड़ पति बन सकते हे गिनती करके देखे जेसे मेरी बर्थ ओफ डेट

wolframalpha.com
 मे ये आसनी से होता हे
सर्च बॉक्स में अपनी बर्थ ऑफ़ डेट इंटर करे

मे ने 32 साल ओर 8 महिने मे 19 दिन यानी टोटल 11949 दिन बिताए

ओर अब 17251 दिन मेरे पास बाकी बचे हे

आप के पास कितने दिन बाकी हे -------------------------------- ?


जिन्दगी का हिसाब किताब आखिर मे शुन्य मे आता हे .

किसी भी C. A. से पुछ लो









दुनिया के नक्शे में आप कहा हे


सोक्रेटीज के पास एक आदमी मिलने आया । वह एक बड़ा धनपति था और ' एथेंन्स ' में उससे बड़ा कोय धनपति नही था उसकी अकड़ स्वाभाविक थी रस्ते पर भी चलता था , तो उसकी चाल अलग थी बात करता था , लोगो की तरफ़ देखता था , तो उसका ढंग अलग था हर जगह उसका अंहकार था । वह सोक्रेटीज से मिलने आया ।


सोक्रेटीज ने उसे बिठाकर कहा की बेठो, में अभी आया , भीतर गया और दुनिया का नक्शा ले आया और पूछने लगा इस दुनिया के नक्शे पर युनान कहा हे ? -छोटासा सा युनान ! उस आदमीने बताया , पर उसने कहा यह पूछते क्यो हो ? वह थोड़ा बेचेने हुआ सोक्रेटीज ने कहा और मुझे बताओ की युनान में एथेंन्स कहा हे ? बस एक छोटा - सा बिन्दु था । पर उस आदमीने कहा पूछते क्यो हो ? सोक्रेटीज ने कहा , बस एक सवाल और ! इस एथेंन्स में तुम्हारा महेल कहा हे ? तो तुम क्यो अब इतने अकड़े हो ?


और यह पृथ्वी का नक्शा सब कुछ नही । कोई चार अरब सूर्य हे और इन चार अरब सूर्यो की अपनी अपनी पृथ्वियां हे । और अब विज्ञानिक कहेते हे चार अरब भी हम जहा तक जान पाते हे , वहा तक हे आगे विस्तार का कोय अंत नहीं हे . जितना हमारा दूरबिन सशक्त होते जाते हे उतनी बड़ी सीमा होती जाती हे . सीमा का कोइ अंत नहीं मालूम होता . तुम उसमे कहा हो ? लेकिन बुद्धि बड़ी अकडी हे छोटा सा सर हे उस सर में छोटी सी बुद्धि हे - कोइ डेढ किलो वजन हे खोपडी का . उस डेढ किलो वजन में सारा सब कुछ हे पर बड़ी अकड़ हे बड़े तर्क हे



आप भी देखे दुनिया के नक्शे में आप कहा हे

विज्ञापन की कला


विज्ञापन की सारी कला 
ही इस बात पर आधारित है : 
 
दोहराए जाओ। फिर चाहे करीना का सौन्दर्य हो, 
चाहे फिल्म स्टार  का, सबका राज़ लक्स टायलेट साबुन में है। 
 
दोहराए जाओ
अखबारों में फिल्मों में, रेडियो पर, 
टेलीविजन पर और धीरे-धीरे लोग मानने लगेंगे।
 
और एक अचेतन छाप पड़ जाती है। 
 
और फिर तुम जब बाजार में साबुन खरीदने जाओगे 
और दुकानदार पूछेगा, कौन-सा साबुन ? 
 
तो तुम सोचते हो कि तुम लक्स टायलेट खरीद रहे हो, 
लक्स टायलेट दे दो। तुम यही सोचते हो, यही मानते हो कि तुमने खरीदा, 
मगर तुम भ्रांति में हो। पुनरुक्ति ने तुम्हें सम्मोहित कर दिया।नये-नये 
 
जब पहली दफा विद्युत - Electricity 
के विज्ञापन बने तो थिर होते थे।
 
फिर वैज्ञानिकों ने कहा कि 
थिर का यह परिणाम नहीं होता। 
 
जैसे लक्स टायलेट लिखा हो बिजली के अक्षरों में 
और थिर रहे अक्षर, तो आदमी एक ही बार पढ़ेगा।
 
 लेकिन अक्षर जलें, बुझें, जले, बुझें, तो जितनी बार जलेंगे,
 बुझेंगे, उतनी बार पढ़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
 
 तुम चाहे कार में ही क्यों न बैठकर गुजर रहे होओ, 
जितनी देर तुम्हें बोर्ड के पास से गुजरने में लगेगी, 
 
उतनी देर में कम-से-कम दस-पंद्रह दफा अक्षर जलेंगे, 
बुझेंगे, उतनी बार पुनरुक्ति हो गयी।
 
 उतनी पुनरुक्ति तुम्हारे भीतर बैठ गयी।

सम्यक आसन , भोजन ,और निद्रा .

तीन सूत्र सम्यक आसन , भोजन ,और निद्रा ।

जिस पर टिका हे हमारे जीवन का आधार


सम्यक आसन


बहार शरीर न हिले - डुले , ऐसे बेठ जाओ , थिर यह तो केवल शुरुआता हे फिर भीतर न मन हिले
कोई कंपन न हो जब मन और तन दोनों नहीं हिलते तब आसन , आसन में अर्थ सिर्फ शारीरिक आसन का नहीं हे । भीतर ऐसे बेठ जाओ की कोई हलन - चलन न हो बहार का आसन तो भीतर के आसन के लिए सिर्फ एक आयोजन हे । तब बहार भीतर तुम रुक गये रुक गये यानि अब कोय वासना नहीं हे । अब कोय आंकांक्षा नहीं हे अ़ब चित में चंचल लहेरे नहीं उठ रही हे अब चित एक झील हो गया हे ।


सम्यक भोजन


और उतना ही भोजन लो जितना सम्यक हे । व्यथँ की चीजे मत खाते फिरो जो जरुरी हे आवश्यक हे । वह पूरा कर लो कुछ लोगो हे जिनका कुल जीवन में काम इतना ही हे : एक तरफ से डालो भोजन और दूसरी तरफ से निकालो भोजन इतना ही उनका काम हे । अपने भोजन को संभालो हम केवल मुह से ही नहीं आँख , कान , नाक से भी भोजन कर ते हे उसे संभालो जिसका आसन सम्हल गया जो बिलकुल शांत होकर बेठ ने में कुशल हो गया जिसके भीतर विचार की तरंग चली गयी , जिसका भोजन सम्हल गया जो देह को इतना देता हे जो आवश्यक हे न कम न ज्यादा कम भी मत देना कम और ज्यादा ये दोनों एक सिक्के के दो पहेलु हे . एक ज्यादा पर खा रहा हे एक कम खा रहा हे दोनों ही अति पर चले गये हे होना हे मध्य में सम्यक आसन , और भोजन सम्हाल लो फिर तीसरी चीज सम्हाल ने की क्रिया शुरू होती हे , निद्रा ।


सम्यक निद्रा


निद्रा सम्हाल ने का क्या अथँ होगा ? यह सूत्र बड़ा गहेरा हे निद्रा सम्हाल ने का क्या अथँ हे जेसे जागते में विचार शांत हो गये इसे ही स्वप्न भी शांत हो जाये सोते में क्योकि स्वप्न भी विचारो के कारण उठते हे । विचारो का प्रति फलन विचार का ही प्रतिफलन हे। स्वप्न विचारो की ही गूंज -अनगुंज हे दिनभर खूब सोचते हो तो रातभर खूब सपने देखते हो । जो भोजन के शोखीन हे वो रात सपनों में भी भोजन कर ते हे राज महेलोमे उनको निमंत्रण मिलता हे . जो कामी हे वो काम वासना के स्वप्न देखते हे । जो धनलोलुप हे वह धन लोलुपता के स्वप्न देखते हे जो पद लोलुप हे वह सपने में सम्राट हो जाते हे हमारे सपने हमारे चीत के विकारों के प्रति फलन हे ।



जब तुम शांत होकर बेठना सिखा जाओगे , भोजन संयत होजाये गा ( जोभी हम भीतर ले रहे हे वोह भोजन हे ) तुम्हारी खोपडी में कोई व्यथं की अफवाह डाल जाये तो तुम इनकार ही नहीं कर ते
हम कान लगाकर सुनते हे । हा भाई और सुनाओ ॥? आगे क्या हुआ ये सब आहार हे , वही देखो जो दिखाना जरुरी हे । वही सुनो जो सुन ना जरुरी हे । वही बोलो जो बोलना जरुरी हे ।
सम्यक भोजन से नीद सध जायेगी फिर नीद में भी तुम शांत रहो गे । स्वप्न विदा हो जाये गे । और एक अपूर्व धटना बनेगी जिस दिन नीद में स्वप्न विदा हो जाते हे उस दिन तुम सोते भी हो और जागे भी रहेते हो ।


हर चीज में मध्य को खोज लो ना ज्यादा खाओ ना कम । ना ज्यादा सोओ न कम । ज्यादा न बोलो न कम । मध्य को खोजते जाओ । आप ने देखा हे कभी रस्सी पर नट चलता हे बस उसी तरह अपने को संभालते रहो रस्सी पर , मध्य में न ज्यादा दाये झुको न बाये झुको , झुके के गिरे
ठिक - ठीक मध्य सध जाता हे । तो श्वास भी मध्य में चलती हे ।


आप भी देखे आप मध्य में हे या दाये बाये

15699909114444 nimesh saholiya 15699924206210 jasmin saholiya 15699879400866 prashanbhai 15698905344018 sunflower bhavesh 15699510043196 home 15699998041030 papa 15697567734319 yogesh 15699227748005 yogesh2024 15699979901526 yogesh p 15699998877752 Aanad 15699979908290 gandhi tradars 15698780865755 gandhitradars2024 15699909016438 dipak 15697567691444 sandip 15699033938299 musdtafa bedipra 15698866773322 natvarlal bedipar 15699998877752 Aanand 15699409164643 softwer house 15699924335520 milanbhai 15699426267276 milanbhai 15699925945379 chovatiya raju 15698780613537 sorathiya sanjay 15698320937347 mortariya raju 15699998779052 Ajay 15699714948338 vishal 15699974900011 bharatbekari 15699714760271 jago 15699998877752 Aanand2024 15699825270075 prakashvadafone 15699998779052 ajay 15699909016438 Dipak 15699825114178 hari 15697600600900 jigneshyogesg 15699426960382 nurudinbhai 15699825074572 manojbhaibedipara 15697990857780 rajubhaischoolnavagam 15699537056777 commayur 15699924310441 commayur2021 156924AYUPS0309J2Z2 TTN 15699824459596 rakeshac
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