स्वबोध के बिना आजादी नहीं मिलती
अद्रश्य व्यापार
परमात्मा हें अद्रश्य
अब अद्रश्य के साथ आप कुछ भी कर सकते हो
उसे बेच भीं सकते हो
अमेरिका में एक दुकान पर अद्रश्य हेरपिन बिकते थे अद्रश्य !
तो स्त्रीया तो बड़ी उत्सुक होती हे अद्रश्य हेर पिन !
दिखाय भी न पड़े और बालो में लगा भी रहे ,
बड़ी भीड़ लगती थी , कतारे लगती थी
एक दिन एक ओरत पहुची ,उसने डब्बा खोलकर देखा ,
उसमे कुछ था तो नहीं
उसने कहा इसमे हें भी ?
थोडा संदेह उसे उठा ,
उसने कहा के अद्रश्य !
माना कि अद्रश्य हे उनको ही लेने आए हु ,
लेकिन पक्का इसमे हे ,
और ये किसी को दिखाय भी नहीं पड़ता
उस दुकानदार ने कहा
कि तू मान न मान , आज महीने भर से तो स्टोक में नहीं हे
फिर भी बिक रहा हे ,
पंडित पुरोहित नहीं बता ते
अब ये अद्रश्य हेर पिन की कोय स्टोक में होने की जरुरत थोड़े ही हें
परमात्मा का
धंधा कुछ अद्रश्य का हें ,
कोई और तरह कि दुकान खोलो तो सामान बेचना पड़ता हें ,
कोय और तरह का धंधा
कितना ही धोखा दो , कितना ही कुशलता से दो
पकडे जाओगे लेकिन परमात्मा बेचो ,
कोन पकडेगा ? केसे पकडेगा ?
सदिया बीत जाती हें बिना स्टोक के बिकता हें
मुल्ला नसरुदीन के घर में चोर
मुल्ला नसरुदीन के घर में एक रात चोर घुसे . चोर बड़े सम्हल कर चल रहे थे , लेकिन मुल्ला एकदम से झपट कर अपने बिस्तर से उठा , लालटेन जला कर उसके पीछे हो लिया . चोर बहोत घबडाये उसने मोका ही नहीं दिया भागने का वह ठीक दरवाजे पर खडा हो गया लालटेन तें लेकर चोर में कहा भाई तुम तो सो रहे थे , एक दम नीद से केसे उछल पड़े ?
मुल्ला ने कहा , घबडाओ मत चिंता न लो भागने की जल्दी न करो अरे में तो सिर्फ तुम्हे सहायता देने के के लिए लालटेन जला कर ... अँधेरे में केसे खोजोगे ? तीस साल हो गए इस घर में खोजते हुए एक कोडी नहीं मिली और तुम अँधेरे में खोज रहे हो , मेने दिन के उजाले में खोजा इसलिए लालटेन जला कर तुम्हारे साथ आता हु ; अगर कुछ मिल गया , बाट लेगे .
आप के घर में कभी चोर आये ये हे .... उनकी थोडी मदद कर ना
आप को भी कुछ मिल जाये
गधे से शादी
उसने कहा की बस अब मजा ही मजा हे , आ गई सोभाग्य की घडी जिसकी प्रतिक्षा थी . दुसरे गधे ने पूछा की हुआ क्या , कुछ कहो भी ! पहेली न उलझाओ और सीधी - सीधी बात कहो .
जीवन भर श्रम की कीमत दो कोडी !
सिकंदर से एक फ़कीर ने कहा की तुने इतना बड़ा साम्राज्य बना लिया , इसका कुछ सार नहीं , में इसे दो कोडी का समजता हु . सिकंदर बहोत नाराज हो गया . उसने उस फ़कीर को कहा इसका तुम्हे ठीक -ठीक उतर देना होगा , अन्यथा गला कटवा दुगा तुमने मेरा अपमान किया हे मेरे जीवन -भर का श्रम और तुम कहेते हो इसकी कीमत कुछ भी नहीं दो कोडी !
उस फ़कीर ने कहा तो फिर ऐसा समझो की ऐक रेगिस्तान में तुम भटक गए हो प्यास लगी जोर की तुम मरे जा रहे हो में मोजूद हु मेरे पास मटकी हे पानी भरा हुआ हे स्वच्छ ! लेकिन में कहेता हु की एक गिलास पानी दुगा ,लेकिन कीमत लूँगा ! अगर में आधा साम्राज्य तुम से मांगू , तुम दे सकोगे ?
सिकंदर ने कहा की अगर में मर रहा हु और प्यास लगी हे तो आधा क्या में पूरा दे दूंगा ! तो उस फ़कीर ने कहा , बात ख़तम हो गयी , ऐक गिलास कीमत .... ऐक गिलास पानी कीमत हे तुम्हारे साम्राज्य की ! और में कहेता हु , दो कोडी ! दो कोडी भी नहीं क्योकि पानी तो मुफ्त मिलता हे !
रेगिस्तान में अपना जीवन बचाने केलिए आप ऐक ग्लास पानी की कीमत कितनी देगे ?
सपने अपने अपने
जिन्दगी का हिसाब किताब
एक साल में 365 दिन
दस साल में 3650 दिन
सो साल में 36500 दिन
अब मुश्किल से हम 80 साल तक जीते हे 80 साल के दिन हुये 29200 उस में से आधे दिन तो निद्रा और भोजन में चले जाते हे बाकि बचे 14600 अ़ब जो भी माया जाल हे वह इतने ही दिनों में करनि हे संपति , जमीन, पद , अब आप को एक दिन में कितने Rs बनाये तो आप करोड़ पति बन सकते हे गिनती करके देखे जेसे मेरी बर्थ ओफ डेट
wolframalpha.com
सर्च बॉक्स में अपनी बर्थ ऑफ़ डेट इंटर करे
मे ने 32 साल ओर 8 महिने मे 19 दिन यानी टोटल 11949 दिन बिताए
ओर अब 17251 दिन मेरे पास बाकी बचे हे
आप के पास कितने दिन बाकी हे -------------------------------- ?
जिन्दगी का हिसाब किताब आखिर मे शुन्य मे आता हे .
किसी भी C. A. से पुछ लो
दुनिया के नक्शे में आप कहा हे
विज्ञापन की कला
सम्यक आसन , भोजन ,और निद्रा .
जिस पर टिका हे हमारे जीवन का आधार
सम्यक आसन
बहार शरीर न हिले - डुले , ऐसे बेठ जाओ , थिर यह तो केवल शुरुआता हे फिर भीतर न मन हिले
कोई कंपन न हो जब मन और तन दोनों नहीं हिलते तब आसन , आसन में अर्थ सिर्फ शारीरिक आसन का नहीं हे । भीतर ऐसे बेठ जाओ की कोई हलन - चलन न हो बहार का आसन तो भीतर के आसन के लिए सिर्फ एक आयोजन हे । तब बहार भीतर तुम रुक गये रुक गये यानि अब कोय वासना नहीं हे । अब कोय आंकांक्षा नहीं हे अ़ब चित में चंचल लहेरे नहीं उठ रही हे अब चित एक झील हो गया हे ।
सम्यक भोजन
और उतना ही भोजन लो जितना सम्यक हे । व्यथँ की चीजे मत खाते फिरो जो जरुरी हे आवश्यक हे । वह पूरा कर लो कुछ लोगो हे जिनका कुल जीवन में काम इतना ही हे : एक तरफ से डालो भोजन और दूसरी तरफ से निकालो भोजन इतना ही उनका काम हे । अपने भोजन को संभालो हम केवल मुह से ही नहीं आँख , कान , नाक से भी भोजन कर ते हे उसे संभालो जिसका आसन सम्हल गया जो बिलकुल शांत होकर बेठ ने में कुशल हो गया जिसके भीतर विचार की तरंग चली गयी , जिसका भोजन सम्हल गया जो देह को इतना देता हे जो आवश्यक हे न कम न ज्यादा कम भी मत देना कम और ज्यादा ये दोनों एक सिक्के के दो पहेलु हे . एक ज्यादा पर खा रहा हे एक कम खा रहा हे दोनों ही अति पर चले गये हे होना हे मध्य में सम्यक आसन , और भोजन सम्हाल लो फिर तीसरी चीज सम्हाल ने की क्रिया शुरू होती हे , निद्रा ।
सम्यक निद्रा
निद्रा सम्हाल ने का क्या अथँ होगा ? यह सूत्र बड़ा गहेरा हे निद्रा सम्हाल ने का क्या अथँ हे जेसे जागते में विचार शांत हो गये इसे ही स्वप्न भी शांत हो जाये सोते में क्योकि स्वप्न भी विचारो के कारण उठते हे । विचारो का प्रति फलन विचार का ही प्रतिफलन हे। स्वप्न विचारो की ही गूंज -अनगुंज हे दिनभर खूब सोचते हो तो रातभर खूब सपने देखते हो । जो भोजन के शोखीन हे वो रात सपनों में भी भोजन कर ते हे राज महेलोमे उनको निमंत्रण मिलता हे . जो कामी हे वो काम वासना के स्वप्न देखते हे । जो धनलोलुप हे वह धन लोलुपता के स्वप्न देखते हे जो पद लोलुप हे वह सपने में सम्राट हो जाते हे हमारे सपने हमारे चीत के विकारों के प्रति फलन हे ।
जब तुम शांत होकर बेठना सिखा जाओगे , भोजन संयत होजाये गा ( जोभी हम भीतर ले रहे हे वोह भोजन हे ) तुम्हारी खोपडी में कोई व्यथं की अफवाह डाल जाये तो तुम इनकार ही नहीं कर ते
हम कान लगाकर सुनते हे । हा भाई और सुनाओ ॥? आगे क्या हुआ ये सब आहार हे , वही देखो जो दिखाना जरुरी हे । वही सुनो जो सुन ना जरुरी हे । वही बोलो जो बोलना जरुरी हे ।
सम्यक भोजन से नीद सध जायेगी फिर नीद में भी तुम शांत रहो गे । स्वप्न विदा हो जाये गे । और एक अपूर्व धटना बनेगी जिस दिन नीद में स्वप्न विदा हो जाते हे उस दिन तुम सोते भी हो और जागे भी रहेते हो ।
हर चीज में मध्य को खोज लो ना ज्यादा खाओ ना कम । ना ज्यादा सोओ न कम । ज्यादा न बोलो न कम । मध्य को खोजते जाओ । आप ने देखा हे कभी रस्सी पर नट चलता हे बस उसी तरह अपने को संभालते रहो रस्सी पर , मध्य में न ज्यादा दाये झुको न बाये झुको , झुके के गिरे
ठिक - ठीक मध्य सध जाता हे । तो श्वास भी मध्य में चलती हे ।
आप भी देखे आप मध्य में हे या दाये बाये