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सम्यक आसन , भोजन ,और निद्रा .

तीन सूत्र सम्यक आसन , भोजन ,और निद्रा ।

जिस पर टिका हे हमारे जीवन का आधार


सम्यक आसन


बहार शरीर न हिले - डुले , ऐसे बेठ जाओ , थिर यह तो केवल शुरुआता हे फिर भीतर न मन हिले
कोई कंपन न हो जब मन और तन दोनों नहीं हिलते तब आसन , आसन में अर्थ सिर्फ शारीरिक आसन का नहीं हे । भीतर ऐसे बेठ जाओ की कोई हलन - चलन न हो बहार का आसन तो भीतर के आसन के लिए सिर्फ एक आयोजन हे । तब बहार भीतर तुम रुक गये रुक गये यानि अब कोय वासना नहीं हे । अब कोय आंकांक्षा नहीं हे अ़ब चित में चंचल लहेरे नहीं उठ रही हे अब चित एक झील हो गया हे ।


सम्यक भोजन


और उतना ही भोजन लो जितना सम्यक हे । व्यथँ की चीजे मत खाते फिरो जो जरुरी हे आवश्यक हे । वह पूरा कर लो कुछ लोगो हे जिनका कुल जीवन में काम इतना ही हे : एक तरफ से डालो भोजन और दूसरी तरफ से निकालो भोजन इतना ही उनका काम हे । अपने भोजन को संभालो हम केवल मुह से ही नहीं आँख , कान , नाक से भी भोजन कर ते हे उसे संभालो जिसका आसन सम्हल गया जो बिलकुल शांत होकर बेठ ने में कुशल हो गया जिसके भीतर विचार की तरंग चली गयी , जिसका भोजन सम्हल गया जो देह को इतना देता हे जो आवश्यक हे न कम न ज्यादा कम भी मत देना कम और ज्यादा ये दोनों एक सिक्के के दो पहेलु हे . एक ज्यादा पर खा रहा हे एक कम खा रहा हे दोनों ही अति पर चले गये हे होना हे मध्य में सम्यक आसन , और भोजन सम्हाल लो फिर तीसरी चीज सम्हाल ने की क्रिया शुरू होती हे , निद्रा ।


सम्यक निद्रा


निद्रा सम्हाल ने का क्या अथँ होगा ? यह सूत्र बड़ा गहेरा हे निद्रा सम्हाल ने का क्या अथँ हे जेसे जागते में विचार शांत हो गये इसे ही स्वप्न भी शांत हो जाये सोते में क्योकि स्वप्न भी विचारो के कारण उठते हे । विचारो का प्रति फलन विचार का ही प्रतिफलन हे। स्वप्न विचारो की ही गूंज -अनगुंज हे दिनभर खूब सोचते हो तो रातभर खूब सपने देखते हो । जो भोजन के शोखीन हे वो रात सपनों में भी भोजन कर ते हे राज महेलोमे उनको निमंत्रण मिलता हे . जो कामी हे वो काम वासना के स्वप्न देखते हे । जो धनलोलुप हे वह धन लोलुपता के स्वप्न देखते हे जो पद लोलुप हे वह सपने में सम्राट हो जाते हे हमारे सपने हमारे चीत के विकारों के प्रति फलन हे ।



जब तुम शांत होकर बेठना सिखा जाओगे , भोजन संयत होजाये गा ( जोभी हम भीतर ले रहे हे वोह भोजन हे ) तुम्हारी खोपडी में कोई व्यथं की अफवाह डाल जाये तो तुम इनकार ही नहीं कर ते
हम कान लगाकर सुनते हे । हा भाई और सुनाओ ॥? आगे क्या हुआ ये सब आहार हे , वही देखो जो दिखाना जरुरी हे । वही सुनो जो सुन ना जरुरी हे । वही बोलो जो बोलना जरुरी हे ।
सम्यक भोजन से नीद सध जायेगी फिर नीद में भी तुम शांत रहो गे । स्वप्न विदा हो जाये गे । और एक अपूर्व धटना बनेगी जिस दिन नीद में स्वप्न विदा हो जाते हे उस दिन तुम सोते भी हो और जागे भी रहेते हो ।


हर चीज में मध्य को खोज लो ना ज्यादा खाओ ना कम । ना ज्यादा सोओ न कम । ज्यादा न बोलो न कम । मध्य को खोजते जाओ । आप ने देखा हे कभी रस्सी पर नट चलता हे बस उसी तरह अपने को संभालते रहो रस्सी पर , मध्य में न ज्यादा दाये झुको न बाये झुको , झुके के गिरे
ठिक - ठीक मध्य सध जाता हे । तो श्वास भी मध्य में चलती हे ।


आप भी देखे आप मध्य में हे या दाये बाये

सिकंदर


सिकंदर मरा जिस् नगर से उसकी अर्थी निकाली गई । वहा के लोगो ने देखा की अर्थी मे से सिकंदर के हाथ बाहर रखे गये थे । सबने पुछा तो पता चला की सिकंदर ने मरनेसे पहेले कहा था मेरे हाथ बाहर रखना ताकि लोगो को पता चले के में भी खली हाथ जा रहा हु ।


क्या कोइ एसी संपदा नहीं हे जिसे मृत्यु मिटा न सके

किसी भी सम्पदा को मृत्यु की कसोटी पर रखना और देखना ये सोना हे या मिटी

जो मृत्यु के बाद बचता हे वो तुम हो

में कोन हु

ओस्पेन्सकी ने गुरजिएफ से मिलनेसे पहेले एक बहोत कीमती किताब " टशियम आरगेनम " लिख चुकाथा पश्चिम के ईतीहास में लिखी गयी तीन किताबो में एक महत्वपुणँ किताब हे । और गुरजिएफ को कोय जानता भी नहीं था एक अनजान फ़कीर था जब ओस्पेन्सकी मिलने गया गुरजिएफ से कोय बीस मित्रो के साथ चुपचाप बेठा हुआ था । ओस्पेन्सकी भी थोडी देर बेठा फिर घबडाया न तो किसी ने परिचय कराया की कोन हे न गुरजिएफ ने पुछा की केसे आये हो बाकि जो बीस लोग थे वह भी चुपचाप बैठे थे तो चुपचाप ही बैठे रहे । पाच सात मिनिट के बाद ओस्पेन्सकी बेचनी बहोत बढ़ गयी । न वहा से उठा सके न बोल सके आखिर हिम्मत जुटाकर उसने कोई बीस मिनिट तक तो बर्दास्त किया , फिर उसने गुरजिएफ से कहा की माफ़ करिये यह क्या हो रहा हे ? आप मुझसे यह भी नहीं पूछते की में कोन हु ?


गुरजिएफ ने आंखे उठा कर ओस्पेन्सकी की तरफ देखा और कहा , तुमने खुद कभी अपने से पुछा हे की में कोन हु और तुम ने ही नहीं पूछा , तो मुझे क्यों कष्ट देते हो ? या तुम्हे अगर पता हो की तुम कोन हो तो बोलो । तो ओस्पेन्सकी के निचे से जमीन खिसकती मालूम पड़ी अब तक तो सोचा था की पता हे की में कोन हु ओस्पेन्सकी ने सब तरह से सोचा कही कुछ पता न चला की में कोन हु ? ।



गुरजिएफ ने कहा बेचनी में मत पडो कुछ और जानते होतो उस संबंध में ही कहो । कुछ नहीं सूझा तो गुरजिएफ ने एक कागज उठाकर दिया और कहा . हो सकता हे संकोच होता हो पास के कमरे में चले जाओ इस कागज पर लिख लाओ जो -जो जानते हो उस संबंध में फिर हम बात न करेगे और जो नहीं जानते हो उस संबंध में कुछ बाते करेगे ओस्पेन्सकी कमरे में गया उसने लिख हे सर्द रात थी लेकिन पसीना मेरे माथे से बहना शुरू हो गया पहेली दफा में पसीने - पसीने हो गया पहेली दफा मुझे पता चला की जानता तो में कुछ भी नहीं हु . सब शब्द मेरी आंखो में धूम ने लगे और मेरे ही शब्द मुझसे कहेने लगे




ओस्पेन्सकी तुम जानते क्या हो .......




और तब इसने वह कोरा कागज ही लाकर गुरजिएफ के चरणो में रखा दिया और कहा में कुछ नहीं जानता गुरजिएफ ने कहा अब तू जान ने की और कदम उठा सकता हे ।



आप क्या जानते हे ..... ?

हमारी पकड़

अंधेरी रात में एक आदमी एक पहाड़ के कगार से गिर गया । अंधेरा था भयानक नीचे खाय थी बड़ी । किसी व्रुक्ष की जड़ो को पकड़ कर लटका रहा । चिल्लाया , चीखा , रोया । अंधकार धना था दूर-दूर तक कोई भी न था । सर्द रात थी कोय उपाय नहीं सुझता था व्रुक्ष की जड़े हाथो से छुटती मालूम पड़ती थी हाथ ठंडे होने लगे , बर्फीले होने लगे रात गहेराने लगी वह आदमी चीखता चिल्लाता हे व्रुक्ष की जड़ो को पकडे हे सारी ताकत लगा रहा हे ठीक उसकी हालत वेसी थी जेसी हमारी हे पकडे हे धन को पद को जोर से पकडे हुए हे की छुट न जाये कुछ ।
लेकिन कब तक पकडे रहेता आखिर पकड़ भी तो थक जाती हे । और मजा तो ये हे की जितना जोर से पकडो उतने जल्दी थक जाते हे जोर से पकडा था , उंगुलियों ने जवाब देना शुरु कर दिया धीरे धीरे आंखो के सामने हाथ खिसक ने लगे । लेकिन कब तक पकडे रहेता आखिर पकड़ भी तो थक जाती हे । और मजा तो ये हे की जितना जोर से पकडो उतने जल्दी थक जाते हे जोर से पकडा था , उंगुलियों ने जवाब देना शुरु कर दिया धीरे धीरे आंखो के सामने हाथ खिसक ने लगे जड़े हाथ से छुटने लगी चिल्लाया रोया लेकिन कोय उपाय नहीं रहा आखिर हाथो से जड़े छूट गयी ।
लेकिन तब उस घाटी में हंसी की आवाज गूंज उठी क्योकि नीचे कोय खाय नहीं थी जमीन थी अंधेर में दिखाय नहीं पड़ती थी वह नाहक ही परेसान हो रहा था और इतनी देर जो कष्ट उठाया वो अपनी पकड़ के कारण ही उठाया वह घाटी तो चीख पुकार से गूंज रही थी हंसी की आवाज से गूंज उठी वह आदमी अपने पर हंस रहा था ।
जिन लोगो ने पकड़ के पागलपन को छोड़ कर देखा हे वे हँसे हे क्योकि जिस से वो भयभीत हो रहे थे वह हे ही नहीं । जिस म्रृत्यु से भय भीत हम हो रहे हे वह हमारी पकड़ के कारण ही प्रतीत होता हे ।
पकड़ छुटते ही वह नहीं हे । जिस दुख से हम भयभीत हो रहे हे वह दुख हमारी पकड़ का हिस्सा हे ।
पकड़ से पैदा होता हे पकड़ छुटते ही खो जाता हे । और जिस् अंधेंरें में हम पता नहीं लगा पा रहे हे
की कहा खड़े होंगे वही हमारी अंतरात्मा हे । सब पकड़ छुटते हे हम अपने में ही प्रतिष्ठित हो जाते हे

आपने भी तो कूछ पकडा हुआ नहीं हे ना..... छोड़ दो उसे फिर हँसी आयेगी ।

उपवास




आज एक दोस्त के घर जाना हुआ दोस्त बहार गया था तो उसके इंतजार में उसके
दादाजी के पास बेठा बातो बातो में उसके दादाजी ने कहा की आप उपवास रखते हो मेने सोचा क्या बोलू हा या ना मगर मेरे कूछ बोलने से पहेले ही उसने कहा आज कल के लड़के कुछ भक्ति वाला काम नहीं करते वेसे भी मेरी ईमेज नास्तिको वाली हे अब दादाजी से में नहीं पुछ सका की आप उपवास का मतलब समज ते हे ।
मगर आप से जरुर पुछु गा की आप उपवास का मतलब समजते हे
उपवास का अर्थ होता हे अपने पास होना अपनी आत्मा के पास होना इसलिए जो व्यक्ति अपने पास होता हे उसे भूख कम लगती हे अपने पास होना याने आनंद में होना शरीर के पास होना याने दुख में हो ना दुखी आदमी अपने को भर ने की चेष्टा करता हे तो वह भोजन से भरेगा जब आनंद से भर जाओगे तो भूख का पता भी नहीं लगता याद भी नहीं आती बच्चे अक्सर खेलने में अपने पास होते हे उसे भोजन की याद भी नहीं आता

चित्रकर ईतना डूब जाता हे अपने चित्र में उसे भोजन की याद तक नहीं आती , संगीतकर डूब ता हे संगीत में , सायंटिस्ट डूब ता हे अपने प्रयोग में बुद्ध, महावीर , जीसस , महम्मद पैगम्बर , नानक , कबीर ,कृष्ण सबने पा लिया आपने आप को उतर गए उपवास में अपनी आत्मा के पास

मगर हमने उपवास का अलग मतलब ही नीकाल लिया हे
पंडित , पुरोहित , मोलवी , चर्च के फ़ाधर ने अपनी दुकान चलाने के रास्ते निकाले हे शायद
वो भी बेचारे क्या करे वो हे लकीर के फ़कीर उसे खुद भी पता नहीं वो क्या कह रहे हे
उपवास करना नहीं होता वो तो होता हे अपने आप
ब्लॉग में कभी मेरा भी उपवास हो जाता हे

आज के हालात

 नदी में डूबते हुए आदमी 

ने पुल पर चलते हुए आदमी को 

आवाज़ लगायी "बचाओ बचाओ" पुल पर 

चलते आदमी ने निचे रस्सी फेकी और कहा 

आओ नदी में डूबता हुआ आदमी रस्सी नहीं 

पकड़ पा रहा था रो रो कर चिल्ला रहा था में

 मरना नहीं चाहता ज़िंदगी बड़ी मेहेंगी है 

कल ही तो मेरी एक कंपनी में नौकरी लगी है ..

 

 इतना सुनते ही पूल बराबर चलते आदमी ने 

अपनी रस्सी खीच ली और भागते भागते वो 

कंपनी में गया उसने वहां बताया की अभी 

अभी एक आदमी डूबकर मर गया है और 

तरह आपकी कंपनी में एक है जगह खाली कर गया है ... 

 

में बेरोजगार हूँ मुझे ले लो ..

रेसप्सनिस्ट बोली दोस्त तुमने देर कर दी, 

अब से कुछ देर पहले हमने एक आदमी को 

लगाया है जो उसे धक्का दे कर तुमसे पहले यहाँ आया है!


Ticket to Heaven - स्वर्ग जाने की टिकिट



सालो से स्वर्ग में मुक़दमा चल रहा था की


स्वर्ग में आने की टिकिट अब ईन्टरनेट पर भी मिलनी चाहिये
आज तक ये अधिकार सिर्फ मंदिर , मस्जिद , चर्च वालो कोही मिले हुए थे
धर्म के ठेकेदारोने बहोत ही हो हल्ला किया . उसने दलील में कहा की ऐसा हुआ तो हमारा धंधा
बंध हो जायेगा मगर हमारे वकील ने सामने दलील देते हुए कहा की समय के साथ बदलाव आना
जरुरी हे ऊपर से स्वर्ग की हालत भी खस्ता हे ये धर्म के ठेकेदारो सारा पैसा खा जाते हे

स्वर्ग में सदियो से रिनोवेसन नहीं भी नहीं हुआ

ईन्टरनेट के माध्यम से बुकिंग करे गे तो हिसाब भी पूरा मिलेगा
स्वर्ग की इनकम भी तेजीसे बढेगी और सुविधा भी बढेगी इस दलील पर हम ये मुक़दमा जित गए


मेरे पास स्वर्ग की टिकिट बेचने के अधिकार हे आप मेसे कोय भी खरीद सकता हे
जल्दी कीजीये मंदी की वजह से अभी 50% डिस्काउंट चल रहा हे ।
 
जब तक आपके भीतर  

लालच और डर  

बना रहेगा  तब तक स्वर्ग  जानेकी  टिकिट  बिकती रहेंगे 

HABIT - आदत


एक आदमी को सिगरेट पीने की आदत हे , उसे सारी दुनिया बुरा कहेती हे . दुसरे को माला फेर ने की आदत हे , उसे सारी दुनिया अच्छा कहेती हे . जो सिगरेट ना पिए तो मुसीबत मालूम पड़ती हे . जो माला फेर ताहे अगर न फेरने दो तो मुसीबत मालूम पड़ती हे दोनों गुलाम हे ।
एक को उठते ही सिगरेट चाहिए , दुसरे को उठते ही माला चाहिए माला वाले को माला न मिले तो माला की तलफ लगती हे अगर न फेरने दो तो मुसीबत मालूम पड़ती हे , दोनों गुलाम हे ।
एक को उठते ही सिगरेट चाहिए. एसे बुनियाद में बहोत फासला नहीं हे सिगरेट भी एक तरह का माला फेरना हे धुआं भीतर ले गए, बाहर ले गये ,भीतर ले गए, बाहर ले गये - मनके फिरा रहे हे ,बाहर ,भीतर . धुएं की माला हे . जरा सुक्ष्म हे . मोती के माला स्थुल हे . कोय आदत इसी नहो जाए की मालिक बन जाये . मालकियत बचाकर आदत का उपयोग कर लेना यही साधना हे मालकियत खो दी , और आदत सवार हो गई तो तुम यंत्रवत हो गए अब तुम्हारा जीवन मूर्च्छित हे ।

इसे लोग भी हे जो पूजा न करे रोज , तो बेचेनी लगती हे , उसे पुछो की पूजा करने से कुछ आनंद मिलता हे ? वो कहते हे , आनंद तो कुछ मिलता नहीं लेकिन न करे तो बेचेनी लगती हे
आदते बुरी होया भलि, इससे कोई भेद नहीं पड़ता जब आदते मालिक हो जाये तो बुरी हे .तुम मालिक रहो तो कोय आदत बुरी नही गुलामी बुरी हे मालकियत भली हे ।

संसार में कुछ भी बुरा नहीं हे स्वामित्व तुम्हारा हो तो संसार में सभी कुछ अच्छा हे स्वामित्व खो गया तुम गुलाम हो जाओ तो आदते बुरी हो या भलि, इससे कोई भेद नहीं पड़ता जब आदते मालिक हो जाये तो बुरी हे .तुम मालिक रहो तो कोय आदत बुरी नही गुलामी बुरी हे मालकियत भली हे जीवन में आदते जरुरी हे . बस इतना ध्यान रखना की आदत मालिक न हो जाये . स्वामित्व खो गया तुम गुलाम हो जाओ तो वह गुलामी चाहे कितनी ही कीमती हो , खतरनाक हे . हीरे - जवाहरात लगेहो जंजीरों पर तो उसको आभुषण मत समझ लेना वे खतरनाक हे वह महेगा सोदा हे ।

अपने को गंवाकर इस जगत में कमाने जेसा कुछ भी नहीं हे
.

स्व + भावः




एक आदमी ने बुध्ध के मुह पर थूक दिया
उन्होंने अपनी चादर से थूक पोंछ लिया
और उस आदमी से कहा , कुछ और कहेना हे ?
बुध्ध ने कहा , यह भी तेरा कुछ कहेना हे ,
वह में समज गया ; कुछ और कहेना हे ?
आनंद बुध्ध का शिष्य था , बहोत क्रोधित हो गया ,
वह कहें ने लगा , यह सीमा के बहार बात हो गयी

बुध्ध का चचेरा भाई था उसकी भुजाए फड़क उठी , उसने कहा बहोत हो गया
वह भूल ही गया के वो भिक्षु हे , सन्यासी हे बुध्ध ने कहा की उसने जो किया वो क्षम्य हे ।
तू जो कर रहा हे वो और भी खतनाक हे उसने कुछ किया नहीं सिर्फ़ कहा हे

कभी ऐसी घडियां होती हे जब तुम कुछ कहेना चाहते हो , लेकिन कह नहीं सकते
शब्द छोटे पड़ जाते हे . किसी को हम गले लगा लेते हे .कहेना चाहते थे , लेकिन इतना ही कहने से कुछ काम न चलता की मुझे बहोत प्रेम हे - वह बहुत साधारण मालूम पड़ता हे - तो गले लगा लेते हे
इस आदमी को क्रोध था वह गाली देना चाहता था लेकिन गाली इसको कोई मजबूत नहीं मिली
इसने थूक कर कहा . बात समज में आ गयीहम समज गए इसने क्या कहा अब इसमे झगडे की क्या बात हेउस आदमीसे बुध्ध ने पूछा आगे और कुछ कहे ना हे ॥?

वह आदमी शमिँदा हुआ . वह बुध्ध के चरणों में गिर पड़ा उसने कहा मुझे क्षमा कर दे .
में बड़ा अपराधी हुं और आज तक तो आपका प्रेम मुझ पर था , अब मेने अपने हाथ से गंवा दिया .
बुध्ध ने कहा की तू उसकी फिकर मत कर क्योकि में तुझे इसलिए थोड़े ही प्रेम करता था की मेरे ऊपर थूकता नहीं थामुजसे प्रेम वैसा ही हें जेसे की फुल खिलता हें और सुगंध बिखर जाती हें
अब दुश्मन पास से गुजरता हें उसे भी वह सुगंध से भर देगी वह खुद ही रुमाल लगा ले , बात अलग . मित्र निकल ताहे थोडी देर ठहर जाए फुल के पास और उनके आनंद में भागीदार हो जाए बात अलग कोई न निकले रास्ते से तो भी सुगंध बहेती रहेगी

क्योकि मेरा स्वभाव प्रेम हें

आप भी देखे आप का स्वभाव क्या हें

स्वभाव यानि स्व + भावः आप को क्या अच्छा लगता हें
प्रेम , शान्ती, करुना , लोभ , दया , लालच , ईषा , क्रोध ................
जेसा आप का स्वभाव होगा वेसी ही आप के आस पास सुगंध होगी



गाँव के नेताजी

एक आदमी ने गाँव के नेता जी को किसी बात पर सच्ची बात कह दी ।
कह दिया कि उल्लू के पटृठे हो!

अब नेताजी को उल्लू का पटृठा कहो तो नेता जी कुछ ऐसे ही नहीं छोड देगें।
उन्होनें अदालत मे मुकदमा मानहानि का चलाया।मुल्ला नसरुद्दीन नेता जी के पास ही खडा था तो उसको गवाही मे लिया ।

जिसने गाली दी थी नेताजी को , उसने मजिस्ट्रेट को कहा कि होटल में कम से कम पचास लोग ,जरुर मैने उल्लू का पटृठा शब्द का उपयोग किया है; लेकिन मैने किसी का नाम नही लिया । नेता जी कैसे सिध्ध कर सकते हैं कि मैने इन्ही को उल्लू का पटृठा कहा है।

नेता जी ने कहा : सिध्ध कर सकता हूँ। मेरे पास गवाह हैं। मुल्ला को खडा किया गया ।
मजिस्ट्रेट ने पूछा कि मुल्ला , तुम गवाही देते हो कि इस आदमी ने नेता जी को उल्लू का पटृठा कहा है! मजिस्ट्रेट ने कहा : तुम कैसे इतने निशिचत हो सकते हो? वहाँ तो पचास लोग मौजूद थे, इसने किसी का नाम तो लिया नहीं। नसरुद्दीन ने कहा : नाम लिया हो कि न लिया हो, पचास मौजूद हों कि पांच सौ मौजूद हों , मगर वहां उल्लू का पटृठा केवल एक था ।

वह नेता जी ही थे ! मै अपने बेटे की कसम खाकर कहता हूँ कि वहां कोई और दूसरा उल्लू का पटृठा था ही नहीं , यह कहता भी तो किसको ?
15699909114444 nimesh saholiya 15699924206210 jasmin saholiya 15699879400866 prashanbhai 15698905344018 sunflower bhavesh 15699510043196 home 15699998041030 papa 15697567734319 yogesh 15699227748005 yogesh2024 15699979901526 yogesh p 15699998877752 Aanad 15699979908290 gandhi tradars 15698780865755 gandhitradars2024 15699909016438 dipak 15697567691444 sandip 15699033938299 musdtafa bedipra 15698866773322 natvarlal bedipar 15699998877752 Aanand 15699409164643 softwer house 15699924335520 milanbhai 15699426267276 milanbhai 15699925945379 chovatiya raju 15698780613537 sorathiya sanjay 15698320937347 mortariya raju 15699998779052 Ajay 15699714948338 vishal 15699974900011 bharatbekari 15699714760271 jago 15699998877752 Aanand2024 15699825270075 prakashvadafone 15699998779052 ajay 15699909016438 Dipak 15699825114178 hari 15697600600900 jigneshyogesg 15699426960382 nurudinbhai 15699825074572 manojbhaibedipara 15697990857780 rajubhaischoolnavagam 15699537056777 commayur 15699924310441 commayur2021 156924AYUPS0309J2Z2 TTN 15699824459596 rakeshac
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