tag:blogger.com,1999:blog-28142272789034595572024-03-20T00:17:28.024-07:00Discovery way of life.Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.comBlogger44125tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-68603016589546033552011-02-01T08:11:00.001-08:002011-02-01T08:11:38.722-08:00Best Business In World<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div><span style="font-size: 130%;">इस बिजनेस की नीव हे डर ओर लालच</span><br />
<br />
1…...आप जहा पे रहे ते हो वहा आस पास खाली जगह चुनो. पैसे देके जगह कभी न खरी दे<br />
( सरकारी हो तो सब से अच्छा )<br />
2…...फिर वहा भजन, कीर्तन , भोजन , कथा ,सब चालू करो<br />
3…...धीरेधीरे पब्लिसीटी बढ़ाओ और रोज भोजन प्रसाद चालू करो<br />
( क्यों की मन का रास्ता पेट से हो कर जाता हे )<br />
किसी का मन जित ना हे तो उसे भोजन खिलावो साथ में दान पेटी रखो<br />
4…... फिर सब भक्तजन ( हमारे ग्राहक ) आना सुरु होंगे<br />
( क्यों की घर पर तो टाइम जाता नहीं टाइम पास के लिए आना जाना शुरु होंगे )<br />
5…...फिर उस खाली जगह में सब को आगे कर के ( आप को पीछे रहे ना हे )<br />
छोटा सा मंदिर बनाओ ( कोय भी देवी देवता का , अरे यार ३३ करोड़ मेसे कोय भी )<br />
जिसे लोग डरे ओर लालच भी रहे क्यों के आप के बिजनेस की नीव हे डर ओर लालच<br />
<span class=""></span><br />
<span style="font-size: 130%;">डर के बारे में थोडा जाने</span><br />
<br />
आज मंदिर नहीं जाऊगा तो ये हो जायेगा , वो हो जायेगा देवी , देवता से डर ना चाहीये<br />
मोत के बाद नर्क में जाना पड़ेगा तो अभी से थोडा दान कर ना जरुरी हे ( रिश्वत ऊपर भी चलती हें )<br />
अपने ही धर्म में जीना दुसरे धर्म में जाना पाप हे ( कही अपना कस्टमर दूसरी जगह चला न जाये )<br />
डरा ने के फिर बहोत सारे उपाय हें ( आप भी सोचो )<br />
<br />
<span style="font-size: 130%;">अब लालच के बारे थोडा जाने</span><br />
<span style="font-size: 130%;"><span class=""></span></span><br />
मोत के बाद स्वर्ग मिलेगा जो दान पुण्य नहीं कर ते वो नर्क में जाये गे<br />
ये सभी (सोफ्टवेर ) धर्मं वाले अलग अलग शब्दों में कहेते हे मगर सब का<br />
मतलब एक ही होता हे<br />
जीते जी आप को कोय आनंद नहीं करना हे सन्यासी की तरह जींदगी जियो<br />
दान कर ते रहो तभी स्वर्ग मिले गा वरना नर्क में जाना पड़े गा<br />
6…...अब डर में दो बाते हे जिसमे जिसका सोफ्टवेर डाला हे वाही वाला डरेगा वर्ना आप उसे<br />
डरा नहीं पाएगे<br />
<span class=""></span><br />
दुनिया में कितने ही <span class="">सोफ्ट<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuHIBxZNiBSEzezf-wSTKFjiZce__KgBdZUov__gwKPY-rv0H7UI_z2afeRRemAZPuLgSOmAWr4c3o6bRE_YhPDi_tWYSstiiWtknP1HEfe3wLvoq2AwnyKOZdLnRBHJIuuZ0NJyWR20Ae/s1600-h/best+b+copy.jpg"><img alt="" border="0" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5324843440229387794" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuHIBxZNiBSEzezf-wSTKFjiZce__KgBdZUov__gwKPY-rv0H7UI_z2afeRRemAZPuLgSOmAWr4c3o6bRE_YhPDi_tWYSstiiWtknP1HEfe3wLvoq2AwnyKOZdLnRBHJIuuZ0NJyWR20Ae/s200/best+b+copy.jpg" style="float: left; height: 50px; margin: 0px 10px 10px 0px; width: 200px;" /></a>वेर</span> हे पर सबसे ज्यादा चार सोफ्टवेर ज्यादा चल ते हे<br />
<span class=""></span></div><div>जीसस हिन्दु इस्लाम बोध्धा </div><div><br />
<br />
7…...जब बच्च पैदा होता हे तो उस में धीरे धीरे एक सोफ्टवेर डाला जाता हे<br />
फिर जिंदगी भर उसे डरता हे<br />
8…...जेसे आप कोय जीसस के सॉफ्टवर वाले को हिन्दु के सॉफ्टवर से नहीं डरा सकते<br />
या इस्लाम के सोफ्टवेर वाले को हिन्दु ( शनि के साडेसाती से नहीं डरा सक ते )<br />
अल्लाह से डराया जा सकता हे<br />
<span class=""></span><br />
<span style="font-size: 130%;">पुरे साल में 150 सभी ज्याद त्यौहार आते हे</span><br />
<span style="font-size: 130%;"><span class=""></span></span><br />
सभी मनाओ बाकि दिनों में भजन ,कीर्तन ,कथा ,सत्संग, शादी की विधि सब चलता रहे गा<br />
१०फिर एक साल के बाद बड़े मंदिर के लिए डोनेसन जमा करो उस में भी डर और लालच का<br />
उपयोग करो के आप को स्वर्ग में वो मिले गा , वर ना नर्क में जाना पड़ेग<br />
11 तक मंदिर बने तब तक सब हरी भक्त सेवा लो ताकि उसे लगे के मंदिर हम ने बनाया हे<br />
उसे बोलो आब आगे बढो हम आप के पीछे हे<br />
12 एक डरे हुए लोगो का ट्रस्ट बनाओ जिसमे उनलोगों की उम्र 60 , 70 वाले ही हो<br />
ताकि वो जल्द ही स्वर्ग में जाए और आप के हाथ में संचालन रहे<br />
<br />
लो हो गया आप का कारोबार , अब आप की ब्रांच शुरु करो<br />
एक शहर मेसे दुसरे शहर , लगेराहो मुना भाई<br />
आप को यकींन नहीं आ रहा ......? तो देखो दुनिया का हाल<br />
सबसे ज्यादा मंदिर ( दुकान ) किस की हे पता हे .......?<br />
<br />
1…...जीसस ( चर्च ) दो लाख से ज्यादा ( पूरी दुनिया में )<br />
2…... इस्लाम ( मस्जिद ) पचास हजार से ज्यादा<br />
3…...बोध्धा ( मठ ) एक लाख से ज्यादा ( पूरी दुनिया में )<br />
4…...हिन्दू ( मंदिर ) एक लाख से ज्यादा ( पूरी दुनिया में )<br />
<br />
दुनिया की इन लाखो दुकानों में कोन सी प्रोडक्ट बिकती हे पता हे …………...अद्रश्य चीजे बिकती हे जो कभी दिखे नहीं देती [ invisible sell ]<br />
<br />
जेसे परमात्मा , आस्था , करुना , प्रेम , दया , अहिंसा ओरभी बहोत कुछ भी पर वो अद्रश्य होनी चाही ये<br />
<br />
ज्यादातर दुकानों में स्टोक नहीं होता फिर भी बिकती हे क्योकि ये अद्रश्य हे</div></div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-47610511466073887982010-05-07T01:08:00.000-07:002010-05-07T01:08:19.809-07:00भोग और त्याग<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhStuYvq-eMv2n3yEm_qUDTmqlDLJqxsA8dRlQrhZPkARdTUl16mk-RhELS1QvKnc5-n0uAl9DFieDH-VVIB1ZTvlNVm_kSQcuxdOfRbSuQE44aCn5ZbCzpFxONZSwGz719e0BOsNdzt62I/s1600/spiritualstorys-Bhog-Tyag.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhStuYvq-eMv2n3yEm_qUDTmqlDLJqxsA8dRlQrhZPkARdTUl16mk-RhELS1QvKnc5-n0uAl9DFieDH-VVIB1ZTvlNVm_kSQcuxdOfRbSuQE44aCn5ZbCzpFxONZSwGz719e0BOsNdzt62I/s400/spiritualstorys-Bhog-Tyag.gif" width="400" /></a></div>पुरानी सूफियों की एक कथा है। एक सम्राट जब छोटा बच्चा था, स्कूल में पढ़ता था, तो उसकी एक युवक से बड़ी मैत्री थी। फिर जीवन के रास्ते अलग-अलग हुए। सम्राट का बेटा तो सम्राट हो गया। वह जो उसका मित्र था, वह त्यागी हो गया, वह फकीर हो गया। उसकी दूर-दिंगत तक प्रशंसा फैल गई–फकीर की। यात्री दूर-दूर से उसके चरणों में आने लगे। खोजी उसका संत्संग करने आने लगे। जैसे-जैसे खोजियों की भीड़ बढ़ती गई, उसका त्याग भी बढ़ता गया। अंततः उसने वस्त्र भी छोड़ दिए वह दिंगबर हो गया। फिर तो वह सूर्य की भांति चमकने लगा। और त्यागियों को उसने पीछे छोड़ दिया।<br />
<br />
लेकिन सम्राट को सदा मन में यह होता था कि मैं उसे भलीभांति जानता हूं, वह बड़ा अहंकारी था स्कूल के दिनों में, कालेज के दिनों में–अचानक इतना महात्याग उसमें फलित हो गया ! इस पर भरोसा सम्राट को न आता था। फिर यह जिज्ञासा उसकी बढ़ती गई। अंततः उसने अपने मित्र को निमंत्रण भेजा कि अब तुम महात्यागी हो गए हो, राजधानी आओ, मुझे भी सेवा का अवसर दो। मेरे प्रजाजनों को भी बोध दो, जगाओ !<br />
<br />
निमंत्रण स्वीकार हुआ। वह फकीर राजधानी की तरफ आया। सम्राट ने उसके स्वागत के लिए बड़ा आयोजन किया। पुराना मित्र था। फिर इतना ख्यातिलब्ध, इतनी प्रशंसा को प्राप्त, इतना गौरवान्वित ! तो उसने कुछ छोड़ा नहीं, सारी राजधानी को सजाया–फूलों से, दीपों से ! रास्ते पर सुंदर कालीन बिछाए, बहुमूल्य कालीन बिछाए। जहां से उसका प्रवेश होना था, वहाँ से राजमहल तक दीवाली की स्थिति खड़ी कर दी।<br />
<br />
फकीर आया, लेकिन सम्राट हैरान हुआ... वह नगर के द्वार पर उसकी प्रतीक्षा करता था अपने पूरे दरबारियों को लेकर, लेकिन चकित हुआ : वर्षा के दिन न थे, राहें सूखी पड़ी थीं, लोग पानी के लिए तड़फ रहे थे और फकीर घुटनों तक कीचड़ से भरा था। वह भरोसा न कर सका कि इतनी कीचड़ राह में कहां मिल गई, और घुटने तक कीचड़ से भरा हुआ है ! पर सबके सामने कुछ कहना ठीक न था। दोनों राजमहल पहुंचे। जब दोनों एकांत में पहुंचे तो सम्राट ने पूछा कि मुझे कहें, यह अड़चन कहां आई ? आपके पैर कीचड़ से भरे हैं !<br />
<br />
उसने कहा, अड़चन का कोई सवाल नहीं। जब मैं आ रहा था तो लोगों ने मुझसे कहा कि तुम्हें पता है, तुम्हारा मित्र, अपना वैभव दिखाने के लिए राजधानी को सजा रहा है ? वह तुम्हें झेंपाना चाहता है। तुम्हें कहना चाहता है, ‘तुमने क्या पाया ? नंगे फकीर हो ! देखो मुझे !’ उसने रास्ते पर बहुमूल्य कालीन बिछाए, लाखो रुपये खर्च किए गए हैं। राजधानी दुल्हन की तरह सजी है। वह तुम्हें दिखाना चाहता है। वह तुम्हें फीका करना चाहता है।... तो मैंने कहा कि देख लिए ऐसा फीका करने वाले ! अगर वह बहुमूल्य कालीन बिछा सकता है, तो मैं फकीर हूं, मैं कीचड़ भरे पैरों से उन कालीनों पर चल सकता हूं। मैं दो कौड़ी का मूल्य नहीं मानता !<br />
<br />
जब उसने ये बातें कहीं तो सम्राट ने कहा, अब मैं निश्चिंत हुआ। मेरी जिज्ञासा शांत हुई। आपने मुझे तृप्त कर दिया। यही मेरी जिज्ञासा थी।<br />
फकीर ने पूछा, क्या जिज्ञासा थी ?<br />
‘यही जिज्ञासा थी कि आपको मैं सदा से जानता हूं। स्कूल में, कालेज में आपसे ज्यादा अहंकारी कोई भी न था। आप इतनी विनम्रता को उपलब्ध हो गए, यही मुझे संदेह होता था। अब मुझे कोई चिंता नहीं। आओ हम गले मिलें, हम एक ही जैसे हैं। तुम मुझ ही जैसे हो। कुछ फर्क नहीं हुआ है। मैंने एक तरह से अपने अहंकार को भरने की चेष्टा की है–सम्राट होकर; तुम दूसरी तरह से उसी अहंकार को भरने की चेष्टा कर रहे हो। हमारी दिशाएं अलग हों, हमारे लक्ष्य अलग नहीं। और मैं तुमसे इतना कहना चाहता हूं, मुझे तो पता है कि मैं अहंकारी हूं, तुम्हें पता ही नहीं कि तुम अहंकारी हो। तो मैं तो किसी न किसी दिन इस अहंकार से ऊब ही जाऊंगा, तुम कैसे ऊबोगे ? तुम पर मुझे बड़ी दया आती है। तुमने तो अहंकार को खूब सजा लिया। तुमने तो उसे त्याग के वस्त्र पहना दिए।’ <br />
<br />
जो व्यक्ति संसार से ऊबता है, उसके लिए त्याग का खतरा है।<br />
दुनिया में दो तरह के संसारी हैं–एक, जो दुकानों में बैठे हैं; और एक, जो मंदिरों में बैठे हैं। दुनिया में दो तरह के संसारी हैं–एक, जो धन इकट्ठा कर रहे हैं; एक जिन्होंने धन पर लात मार दी है। दुनिया में दो तरह के दुनियादार हैं–एक जो बाहर की चीजों से अपने को भर रहे हैं; और दूसरे, जो सोचते हैं कि बाहर की चीजों को छोड़ने से अपने को भर लेंगे। दोनों की भ्रांति एक ही है। न तो बाहर की चीजों से कभी कोई अपने को भर सकता है और न बाहर की चीजों को छोड़ कर अपने को भर सकता है। और न बाहर की चीजों को छोड़ कर अपने को भर सकता है। भराव का कोई भी संबंध बाहर से नहीं है। <br />
<br />
एक आदमी भोग में पड़ा है, धन इकट्ठा करता, सुंदर स्त्री की तलाश करता, सुंदर पुरुष को खोजता, बड़ा मकान बनाता–तुम पूछो उससे, क्यों बना रहा है ? वह कहता है, इससे सुख मिलेगा। एक आदमी सुंदर मकान छोड़ देता, पत्नी को छोड़ कर चला जाता, घर-द्वार से अलग हो जाता, नग्न भटकने लगता, संन्यासी हो जाता–पूछो उससे, यह सब तुम क्यों कर रहे हो ? वह कहेगा, इससे सुख मिलेगा। तो दोनों की सुख की आकांक्षा है और दोनों मानते हैं कि सुख को पाने के लिए कुछ किया जा सकता है। यही भ्रांति है।<br />
<br />
सुख स्वभाव है। उसे पाने के लिए तुम जब तक कुछ करोंगे, तब तक उसे खोते रहोगे। तुम्हारे पाने की चेष्टा में ही तुमने उसे गंवाया है। संसारी एक तरह से गंवाता, त्यागी दूसरी तरह से गंवाता। तुम किस भांति गंवाते, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम किस ढंग की शराब पीकर बेहोश हो, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। तुम किस मार्के की शराब पीते हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।<br />
<br />
लेकिन इस गणित को ठीक खयाल में ले लेना। संसारी कहता है, इतना-इतना मेरे पास होगा तो मैं सुखी हो जाऊँगा। त्यागी कहता है, मेरे पास कुछ भी न होगा तो मैं सुखी हो जाऊंगा। दोनों के सुख सशर्त हैं। और जब तक तुम शर्त लगा रहे हो सुख पर, तब तक तुम्हें एक बात समझ में नहीं आई कि सुख तुम्हारा स्वभाव है। उसे पाने कहीं जाना नहीं; सुख मिला ही हुआ है। तुम जाना छोड़ दो। तुम कहीं भी खोजो मत। तुम अपने भीतर विश्राम में उतर जाओ। <br />
<br />
चैतन्य में विश्राम को पहुंच जाना ही सुख है, आनंद है, सच्चिदानंद है।<br />
तुम कहीं भी मत जाओ ! तरंग ही न उठे जाने की ! जाने का अर्थ ही होता है : हट गए तुम अपने स्वभाव से। मांगा तुमने कुछ, चाहा तुमने कुछ, खोजा तुमने कुछ–च्युत हुए अपने स्वभाव से। न मांगा, न खोजा, न कहीं गए–की आंख बंद, डूबे अपने में !<br />
<br />
जो है। वह इसी क्षण तुम्हारे पास है। जो है, उसे तुम सदा से लेकर चलते रहे हो। जो है वह तुम्हारी गुदड़ी में छिपा है। वह हीरा तुम्हारी गुदड़ी में पड़ा है। तुम गुदड़ी देखते हो और भीख मांगते हो। तुम सोचते हो, हमारे पास क्या ? और हीरा गुदड़ी में पड़ा है। तुम गुदड़ी खोलो। और जिसे तुम खोजते थे, तुम चकित हो जाओगे, वही तो आश्चर्य है–जो जनक को आंदोलित कर दिया है। जनक कह रहे हैं, ‘आश्चर्य ! ऐसा मन होता है कि अपने को ही नमस्कार कर लूं, कि अपने चरण छू लूं ! हद हो गई, जो मिला ही था, उसे खोजता था ! मैं तो परमेश्वरों का परमेश्वर हूं ! मैं तो इस सारे जगत का सार हूं ! मै तो सम्राट हूं ही और भिखारी बना घूमता था !’<br />
<br />
सम्राट होना हमारा स्वभाव है; भिखारी होना हमारी आदत। भिखारी होना हमारी भूल है। भूल को ठीक कर लेना है; न कहीं खोजने जाना है, न कुछ खोजना है।<br />
<br />
भोग और त्याग दोनों एक ही लकीर के दो छोर हे<br />
<br />
आप किस छोर पर हे .......?Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-7339254151713310482009-09-24T01:27:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.426-08:00सत्य की उपलब्धि<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizjEedaXF6ASd3ZPY4ReD5JqJRsC22KrYEaqKcglamYT8h1lU4jHJlxnM30zNPJu9cjKVZ11gbc9gMxVJubJkKg4VUPYIwLACQT85AyReFCjELyG7pBI-RblhSSyBkYsF8s6ZabEH05RyE/s1600-h/ashram_sanyasi_.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 281px; height: 337px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizjEedaXF6ASd3ZPY4ReD5JqJRsC22KrYEaqKcglamYT8h1lU4jHJlxnM30zNPJu9cjKVZ11gbc9gMxVJubJkKg4VUPYIwLACQT85AyReFCjELyG7pBI-RblhSSyBkYsF8s6ZabEH05RyE/s320/ashram_sanyasi_.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5384992809019277970" border="0" /></a><br /> चीन में एक बहुत बड़ा फ़कीर हुआ ; वो अपने गुरु के पास गया तो गुरु ने उससे पूछा की तू सच में सन्यासी हो जाना चाहता हे की सन्यासी दिखाना चाहता हे . उसने कहा की जब सन्यासी ही होने आया तो दिखने का क्या करुगा ?<br /><br /> गुरु ने कहा फिर ऐसा समज , ये अपनी आखरी मुलाकात हुई . पाँच सो सन्यासी हे इस आश्रम में , तू उनका चावल कूटने का काम कर . अब दुबारा यहाँ मत आना . जरुरत जब होगी में आ जाऊंगा .<br /><br /> कहेते हे बारह साल बीत गये , वो सन्यासी चोके के पीछे , अँधेरे गृह में चावल कूटता रहा , पाँच सो सन्यासी थे सुबह से उठता चावल कूटता रहता ,रोज सुबह से उठता , चावल कूटता रहता रात थक जाता सो जाता बारह साल बीत गये वो कभी गुरु के पास दुबारा नहीं गया क्योकि जब गुरु ने कह दिया बात ख़तम हो गयी जब जरुरत होगी वो आ जाये गे भरोसा कर लिया<br /><br /> कुछ दिनों तक तो पुराने ख्याल चलते रहे , लेकिन अब चावल ही कुटना हो दिन- रात तो पुराने खयालो को चलाने से फायदा भी क्या ? धीरे धीरे पुराने ख्याल विदा हो गये उनकी पुनुरुक्ति में कोय अर्थ न रहा . खाली हो गये ,<br /><br /> बारह साल बीतते- बीतते तो उसके सारे विचार विदा ही हो गये चावल ही कूटता रहा शांत रात सो जाता , सुबह उठ आता , चावल कूटता रहेता न कोय अड़चन न कोय उलझन . सीधा - साधा काम , विश्राम .<br /><br /> बारह साल बीतने पर गुरु ने घोषणा की कि मेरे जाने का वक्त आ गया और जो व्यक्ति भी उतराधिकारी होना चाहता हो मेरा , रात मेरे दरवाजे पर चार वाक्य लिख जाये जिससे उनके सत्य का अनुभव हो . सन्यासी बहोत डरे , क्योकि गुरु को धोखा देना आसन नहीं था , शास्त्र तो बहोत ही पठे थे . फिर जो सब से बड़ा पंडित था वही रात लिख गया आके उसने लिखा<br /><br /><br /> <span style="color: rgb(153, 0, 0);"> " </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">मन</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">एक</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">दर्पण</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">कि</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">तरह</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">हे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">जिसपे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">धुल</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">जम</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">जाती</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">हे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">धुल</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">साफ</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">कर</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">दो</span><br /><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">उपलब्ध</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">होजाता</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">हे </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">. </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">धुल</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">साफ</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">कर</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">दो</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">सत्य</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">अनुभव</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">में</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">आ</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">जाता</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">हे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> "</span><br /><br /><br /> सुबह गुरु उठा , उसने कहा ये किस ना समज ने मेरी मेरी दीवाल ख़राब कर दी ? उसे पकडो वो पंडित तो रात को ही भाग गया था , क्योकि वो भी खुद डरा था कि धोखा दे दिया गुरु को ! ये बात तो बढ़िया कही थी उसने पर शास्त्रों से निकाली थी . ये अपनी न थी .<br /><br /><br /> ये बात जब चावल कूटने वाले ने सुनी तो वो हँसने लगा तब दुसरे सन्यासी ने कहा तो तू भी ज्ञानी हो गया , हम शास्त्रों से सर ठोक- ठोक के मर गए तो तू लिख सकता हे इससे बहेतर कोय वचन ? उसने कहा लिखना तो में भूल गया बोल सकता हु , कोय लिखदे जाके , लेकिन एक बात ख्याल रहे उतराधिकारी होने की मुझे कोय आकांक्षा नहीं . उसने लिख वाया की ---<br /><br /><br /><br /> <span style="color: rgb(153, 0, 0);"> " </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">केसा</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">दर्पण</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> ? </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">केसी</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">धुल</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> ? </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">न</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">कोय</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">दर्पण</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">हे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> , </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">न</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">कोय</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">धुल</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">हे</span><br /><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> जो </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">जान</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">लेता</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">हे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">वो</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">धर्म </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">उपलब्ध</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">हो</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">जाता</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);">हे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);"> "</span><br /><br /><br /><br /> आधी रात गुरु उसके पास आया और उसने कहा की अब तू यहाँ से भाग जा अन्यथा ये पाँच सो तुझे मार डालेगे . ये मेरा चोगा ले , तू मेरा उतराधिकारी बनना चाहे या न बनना चाहे , इससे कोई सवाल नहीं , तू मेरा उतराधिकारी हे . मगर तू यहासे भाग जा अन्यथा ये बर्दास्त न करेगे की चावल कूटने वाला और सत्य को उपलब्ध हो गया<br /><br /> <span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">जीवन</span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;"> </span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">में</span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;"> </span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">कुछ</span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;"> </span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">होने</span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;"> </span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">की</span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;"> </span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">चेष्ठा</span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;"> </span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">तुम्हे</span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;"> </span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">और</span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;"> </span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">भी</span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;"> </span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">दुर्घटना</span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;"> </span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">में</span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;"> </span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">ले</span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;"> </span><span style="color: rgb(204, 0, 0); font-weight: bold;">जायेगी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0); font-weight: bold;"><span style="color: rgb(204, 0, 0);"> </span>. </span><br /><br />तुम चावल ही कूटते रहेना . कोय हर्जा नहीं कोय भी सरल सी क्रिया , काफी हे . असली सवाल भीतर जाने का हे अपने जीवन को ऐसा जमा लो की बहार उलजाव न रहे थोडा बहोत काम जरुरी हे , कर लिया फिर भीतर सरक गए , बस जल्दी ही तुम पाओगे <span style="color: rgb(153, 0, 0);">दुर्घटना</span> समाप्त हो गयी .Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-74034057572131234932009-09-15T00:45:00.000-07:002018-03-08T07:12:34.331-08:00अपने को गंवाकर इस जगत में कमाने जेसा कुछ भी नहीं हे ।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhvGSgjqWm85vjxKLo4R1EmIDIuLW57gxBbg7r0yo1WemYP8JDJII4ejMhezyVvM8LgHoKGycHjm5RsFK4PuBsDXGtRbQbCaW2ZPyrvDm0attbJ7Mog0Btr1JzBpfr2EJXS3sIa3f7gouWo/s1600-h/co11.jpg" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}"><img alt="" border="0" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5381597704783003730" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhvGSgjqWm85vjxKLo4R1EmIDIuLW57gxBbg7r0yo1WemYP8JDJII4ejMhezyVvM8LgHoKGycHjm5RsFK4PuBsDXGtRbQbCaW2ZPyrvDm0attbJ7Mog0Btr1JzBpfr2EJXS3sIa3f7gouWo/s320/co11.jpg" style="cursor: pointer; float: left; height: 240px; margin: 0pt 10px 10px 0pt; width: 240px;" /></a><br />
एक आदमी को सिगरेट पीने की आदत हे , उसे सारी दुनिया बुरा कहेती हे . दुसरे को माला फेर ने की आदत हे , उसे सारी दुनिया अच्छा कहेती हे . जो सिगरेट ना पिए तो मुसीबत मालूम पड़ती हे . जो माला फेर ताहे अगर न फेरने दो तो मुसीबत मालूम पड़ती हे दोनों गुलाम हे ।<br />
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एक को उठते ही सिगरेट चाहिए , दुसरे को उठते ही माला चाहिए माला वाले को माला न मिले तो माला की तलफ लगती हे अगर न फेरने दो तो मुसीबत मालूम पड़ती हे , दोनों गुलाम हे ।<br />
एक को उठते ही सिगरेट चाहिए. एसे बुनियाद में बहोत फासला नहीं हे सिगरेट भी एक तरह का माला फेरना हे धुआं भीतर ले गए, बाहर ले गये ,भीतर ले गए, बाहर ले गये - मनके फिरा रहे हे ,बाहर ,भीतर . धुएं की माला हे . जरा सुक्ष्म हे . मोती के माला स्थुल हे . कोय आदत इसी नहो जाए की मालिक बन जाये . मालकियत बचाकर आदत का उपयोग कर लेना यही साधना हे मालकियत खो दी , और आदत सवार हो गई तो तुम यंत्रवत हो गए अब तुम्हारा जीवन मूर्च्छित हे ।<br />
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इसे लोग भी हे जो पूजा न करे रोज , तो बेचेनी लगती हे , उसे पुछो की पूजा करने से कुछ आनंद मिलता हे ? वो कहते हे , आनंद तो कुछ मिलता नहीं लेकिन न करे तो बेचेनी लगती हे<br />
आदते बुरी होया भलि, इससे कोई भेद नहीं पड़ता जब आदते मालिक हो जाये तो बुरी हे .तुम मालिक रहो तो कोय आदत बुरी नही गुलामी बुरी हे मालकियत भली हे ।<br />
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संसार में कुछ भी बुरा नहीं हे स्वामित्व तुम्हारा हो तो संसार में सभी कुछ अच्छा हे स्वामित्व खो गया तुम गुलाम हो जाओ तो आदते बुरी हो या भलि, इससे कोई भेद नहीं पड़ता जब आदते मालिक हो जाये तो बुरी हे .तुम मालिक रहो तो कोय आदत बुरी नही गुलामी बुरी हे मालकियत भली हे जीवन में आदते जरुरी हे . बस इतना ध्यान रखना की आदत मालिक न हो जाये . स्वामित्व खो गया तुम गुलाम हो जाओ तो वह गुलामी चाहे कितनी ही कीमती हो , खतरनाक हे . हीरे - जवाहरात लगेहो जंजीरों पर तो उसको आभुषण मत समझ लेना वे खतरनाक हे वह महेगा सोदा हे ।<br /><br /><br /><a href="http://divyabhaskar.co.in/2009/08/29/090829175232_raju_rajesh.html"><br /></a><br /><a href="http://divyabhaskar.co.in/2009/08/29/090829175232_raju_rajesh.html"> </a><br /><br /><br />
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Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-66700972385181485832009-08-25T00:50:00.000-07:002010-04-04T00:23:24.341-07:00<div><font face="verdana"><span class="transl_class" id="0" title="Click to correct"><span class=" transl_class" id="10" title="Click to correct">ये</span></span> <span class="transl_class" id="1" title="Click to correct">किस</span> <span class="transl_class" id="2" title="Click to correct">प्यारी</span> <span class="transl_class" id="3" title="Click to correct">हिफाजत</span> <span class="transl_class" id="4" title="Click to correct">में</span> , </font><br /><br /><div><br /><font face="verdana"><span class="transl_class" id="5" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="6" title="Click to correct">बेखबरी</span> <span class="transl_class" id="7" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="8" title="Click to correct">हालत</span> <span class="transl_class" id="9" title="Click to correct">में</span> .</font></div></div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-69595319165365870702009-06-30T09:03:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.438-08:00स्वबोध के बिना आजादी नहीं मिलती<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8zeuQBnDDeVWi5Oaxb84eKj9GPi2rhEljASSmYf9-cT-n19zAmYWqbGf5keETdA9pcIzHwWDlFVDIhLuILina9sbcsLYRTADAVUsVK59B0KOhM4W_SBSz_agitQvrybDvUa0oHveV-aIV/s1600-h/janjir.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5353168422604395970" style="margin: 0px 10px 10px 0px; float: left; width: 320px; height: 213px;" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8zeuQBnDDeVWi5Oaxb84eKj9GPi2rhEljASSmYf9-cT-n19zAmYWqbGf5keETdA9pcIzHwWDlFVDIhLuILina9sbcsLYRTADAVUsVK59B0KOhM4W_SBSz_agitQvrybDvUa0oHveV-aIV/s320/janjir.jpg" border="0" /></a> तानसेन सम्राट अकबर के नवरत्नों में भी गिना जाता है एक दिन अकबर ने तानसेन से पूछा तानसेन तुम इतना अच्छा संगीत बजाते हो तुम्हारा कोय जवाब नहीं पर बाद में मुझे ये भी ख्याल आता हे के तुम ने भी किसी से ये सिखा होगा तुम इतना सारा नया संगीत किस कुवे से निकाल लाते हो मुझे ये जानना हे<br /><div>तानसेन ने कहा की ये मेरे गुरु हरिदास से मेने सिखा हे अकबर ने कहा तो आप अपने गुरु को मेरे दरबार में बुलावो में उसका संगीत सुनना चाहता हु तानसेन ने कहा आप मुझे माफ़ करे पर उसे में नहीं ला सकता वो अपनी मर्जी के मालिक हे उसे जब मोज आती हे तब वह संगीत बजाते हे पर आप को संगीत सुनना हे तो हमें उसके पास जाना होगा पर सम्राट बनके गए तो कभी उसका संगीत नहीं सुन पायेगे . रात के अँधेरे में तानसेन और अकबर जंगल में जहा पर उसके गुरु रहेते थे वहा गये इंतजार करने लगे सुबह होने को थी तब तानसेन के गुरु हरिदास ने संगीत बजाना सुरु किया अकबर इतने आनंद से भर गये और तानसेन से कहा की तुम तो इसके आगे कुछ भी नहीं </div><br /><div>तब तानसेन ने कहा जहां पनाह इसलिए तो में आप को जंगल में लाया ताकि आप देख सको एक गुलामी और आजादी में क्या फर्क होता हे में आप का गुलाम हु आप जब कहो तब संगीत बजता हु मेरा मन होया न हो और मेरे गुरु आजाद हे वह सिर्फ अपने लिए गाते - बजाते हे जब उसकी मोज </div><br /><div></div><div>आप भी कोय भी काम अच्छा से अच्छा करो पर जब तक गुलामी की जंजीर आपके पैर हे तब तक वह सुगध नहीं आएगी जो आजादी में आती हे </div><br /><div>स्वबोध के बिना आजादी नहीं मिलती </div><div>पूछो अपने आप <span>से<br /><br /></span> </div><div></div><div><span style="color: rgb(0, 153, 0); font-weight: bold; font-family: verdana;">Who Am I</span><br /><br /><span class=""></span></div><div>उतर मिलेगा </div><br /><div></div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-54277026816604676772009-06-25T02:45:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.440-08:00अद्रश्य व्यापार<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjo2fC_swiGnBNa87_-2vbgf3gQfzK3_EMWAhOjoyF5EcKpTOYyWpRQLBpKKnJKt095FQDipL9aWXzM6baO5E7xlLbNSbkeKeKwWaM6MVshHZNwny58dBvFjkuWf5QzlC2TeKgPtM7_BIcg/s1600-h/Tempal.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5351202655053349282" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 300px; CURSOR: hand; HEIGHT: 225px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjo2fC_swiGnBNa87_-2vbgf3gQfzK3_EMWAhOjoyF5EcKpTOYyWpRQLBpKKnJKt095FQDipL9aWXzM6baO5E7xlLbNSbkeKeKwWaM6MVshHZNwny58dBvFjkuWf5QzlC2TeKgPtM7_BIcg/s320/Tempal.jpg" border="0" /></a><br /><span class=""></span><br /><span class=""></span><br /><span class=""></span><br /><span class=""></span><br />परमात्मा हें अद्रश्य<br />अब अद्रश्य के साथ आप कुछ भी कर सकते हो<br />उसे बेच भीं सकते हो<br /><br /><span class=""></span><br /><span class=""></span><br />अमेरिका में एक दुकान पर अद्रश्य हेरपिन बिकते थे अद्रश्य !<br />तो स्त्रीया तो बड़ी उत्सुक होती हे अद्रश्य हेर पिन !<br />दिखाय भी न पड़े और बालो में लगा भी रहे ,<br />बड़ी भीड़ लगती थी , कतारे लगती थी<br />एक दिन एक ओरत पहुची ,उसने डब्बा खोलकर देखा ,<br />उसमे कुछ था तो नहीं<br />उसने कहा इसमे हें भी ?<br />थोडा संदेह उसे उठा ,<br />उसने कहा के अद्रश्य !<br />माना कि अद्रश्य हे उनको ही लेने आए हु ,<br />लेकिन पक्का इसमे हे ,<br />और ये किसी को दिखाय भी नहीं पड़ता<br />उस दुकानदार ने कहा<br />कि तू मान न मान , आज महीने भर से तो स्टोक में नहीं हे<br />फिर भी बिक रहा हे ,<br />पंडित पुरोहित नहीं बता ते<br />अब ये अद्रश्य हेर पिन की कोय स्टोक में होने की जरुरत थोड़े ही हें<br /><br /><br />परमात्मा का<br />धंधा कुछ अद्रश्य का हें ,<br />कोई और तरह कि दुकान खोलो तो सामान बेचना पड़ता हें ,<br />कोय और तरह का धंधा<br />कितना ही धोखा दो , कितना ही कुशलता से दो<br />पकडे जाओगे लेकिन परमात्मा बेचो ,<br /><br />कोन पकडेगा ? केसे पकडेगा ?<br /><br />सदिया बीत जाती हें बिना स्टोक के बिकता हेंRajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-90880904050057053462009-06-10T08:03:00.000-07:002022-10-11T08:04:58.460-07:00मुल्ला नसरुदीन के घर में चोर<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEishMQoXiCJYl_Sa_7wTjazXOmFe9qERJRjn52GFf_3lPeGM15q5ki_b-8MzmPXwwnyQgDf9hxGkMXbs0nX8SGNMMD8GZcsdd-8Ln4azFkVuwoYhgAysCly0ozRzNIlXx5aG4FU3tztd07P/s1600-h/mull.jpg"></a><br />मुल्ला नसरुदीन के घर में एक रात चोर घुसे . चोर बड़े सम्हल कर चल रहे थे , लेकिन मुल्ला एकदम से झपट कर अपने बिस्तर से उठा , लालटेन जला कर उसके पीछे हो लिया . चोर बहोत घबडाये उसने मोका ही नहीं दिया भागने का वह ठीक दरवाजे पर खडा हो गया लालटेन तें लेकर चोर में कहा भाई तुम तो सो रहे थे , एक दम नीद से केसे उछल पड़े ?<br /><br /><br /><br />मुल्ला ने कहा , घबडाओ मत चिंता न लो भागने की जल्दी न करो अरे में तो सिर्फ तुम्हे सहायता देने के के लिए लालटेन जला कर ... अँधेरे में केसे खोजोगे ? तीस साल हो गए इस घर में खोजते हुए एक कोडी नहीं मिली और तुम अँधेरे में खोज रहे हो , मेने दिन के उजाले में खोजा इसलिए लालटेन जला कर तुम्हारे साथ आता हु ; अगर कुछ मिल गया , बाट लेगे .<br /><br /><br />आप के घर में कभी चोर आये ये हे .... उनकी थोडी मदद कर ना<br /><br />आप को भी कुछ मिल जाये<br /><br /><br /><br /><br /><div align="center"><span style="color: navy; font-size: 78%;"><marquee bgcolor="#ffffff" direction="right" loop="true" width="100%"><b>WellCome </b></marquee></span></div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-14169244521769007362009-06-07T08:38:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.444-08:00गधे से शादी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4BN3hooz1jCa3FQP9uoUwexDh8O5To9smX57frnz44hn6NHOiyPYJlPM-0HoQa2YE5yecsTT3zjpAYZwOeg0U4Dg-KxB5_Gukl3h9rdwV0PbMXq5lF6BDN1tC1ZTiCasK9F6jUL-Ltn4H/s1600-h/donkey-wedding.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5344623129343732226" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 318px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4BN3hooz1jCa3FQP9uoUwexDh8O5To9smX57frnz44hn6NHOiyPYJlPM-0HoQa2YE5yecsTT3zjpAYZwOeg0U4Dg-KxB5_Gukl3h9rdwV0PbMXq5lF6BDN1tC1ZTiCasK9F6jUL-Ltn4H/s320/donkey-wedding.jpg" border="0" /></a><br /><div>दो गधे धुप में खड़े थे एक गधा बड़ा प्रसन्न हो रहा था , दुलती झाड़ रहा था और लोट रहा था दुसरे ने पूछा बड़े आनंदित हो ,बड़े मस्त हो ,बात क्या हे ? सदा तुम्हे उदास देखा , आज बड़े आनंदमग्न हो रहे हो बात क्या हे ?<br />उसने कहा की बस अब मजा ही मजा हे , आ गई सोभाग्य की घडी जिसकी प्रतिक्षा थी . दुसरे गधे ने पूछा की हुआ क्या , कुछ कहो भी ! पहेली न उलझाओ और सीधी - सीधी बात कहो .</div><br /><div>बात ये हे की में जिस धोबी का गधा हु , उसकी लड़की जवान हो गई हे ! दुसरे गधे ने कहा : लेकिन उसकी लड़की जवान होने से तुम क्यों मस्त हो रहे हों ? उसने कहा तू सुन तो पहेले मेरी बात . जब भी लड़की कुछ भूल चुक करती हे तो धोबी गुस्से में आ जाता हे और कहेता हे की देख अगर तुने ठीक से काम न किया तो गधे से शादी कर दुगा . अब बस दिन - दो दिन की बात हे किसी भी दिन , जिस दिन लड़की ने कोई भूल की और धोबी गुस्से में आ गया .. और तुम तो जानते ही हों मेरे मालिक को के केसा गुस्से में आता हे जब मुझ पर गुस्से में आ जाता हे तो एसे डंडे फटकारता हे ... की जिस दिन भी जोश में आ गया उस दिन यह शादी हुई ही हुई हे . तब सोभाग्य का दिन आ गया . मगर तुम उदास न होओ , बारात में तुम हे भी ले चलेगे . </div><br /><div></div><br /><div>ज्यादा तर एसे ही हमने अपने जीवन में सपने पाल रखे हे .</div><br /><div>कही आप ने भी तो .............................?</div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-34335232952612453512009-05-28T03:10:00.000-07:002022-10-11T08:22:30.568-07:00जीवन भर श्रम की कीमत दो कोडी !<br />सिकंदर से एक फ़कीर ने कहा की तुने इतना बड़ा साम्राज्य बना लिया , इसका कुछ सार नहीं , में इसे दो कोडी का समजता हु . सिकंदर बहोत नाराज हो गया . उसने उस फ़कीर को कहा इसका तुम्हे ठीक -ठीक उतर देना होगा , अन्यथा गला कटवा दुगा तुमने मेरा अपमान किया हे मेरे जीवन -भर का श्रम और तुम कहेते हो इसकी कीमत कुछ भी नहीं दो कोडी !<br /><br /><br />उस फ़कीर ने कहा तो फिर ऐसा समझो की ऐक रेगिस्तान में तुम भटक गए हो प्यास लगी जोर की तुम मरे जा रहे हो में मोजूद हु मेरे पास मटकी हे पानी भरा हुआ हे स्वच्छ ! लेकिन में कहेता हु की एक गिलास पानी दुगा ,लेकिन कीमत लूँगा ! अगर में आधा साम्राज्य तुम से मांगू , तुम दे सकोगे ?<br /><br /><br />सिकंदर ने कहा की अगर में मर रहा हु और प्यास लगी हे तो आधा क्या में पूरा दे दूंगा ! तो उस फ़कीर ने कहा , बात ख़तम हो गयी , ऐक गिलास कीमत .... ऐक गिलास पानी कीमत हे तुम्हारे साम्राज्य की ! और में कहेता हु , दो कोडी ! दो कोडी भी नहीं क्योकि पानी तो मुफ्त मिलता हे !<br /><br /><br />रेगिस्तान में अपना जीवन बचाने केलिए आप ऐक ग्लास पानी की कीमत कितनी देगे ?Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-52112399750230527982009-05-21T00:12:00.000-07:002022-10-11T08:22:21.738-07:00सपने अपने अपने<br /><div>एक कुता झाड़ के निचे बेठा था सपना देख रहा था आखे बंद थी और बड़ा आनंदित हो रहा था और बड़ा डावाडोल हो रहा था मस्त था एक बिल्ली जो व्रुक्ष के ऊपर बेठी थी उसने कहा की मेरे भाई , जरुर कोई मजेदार धटना धट रही हे . क्या देख रहे हो ? </div><br /><div>' सपना देख रहा था बाधा मत डाल ' कुत्ते ने कहा , सब ख़राब कर दिया बिच में बोलकर , बड़ा गजब का सपना आ रहा था एकदम हड्डिया बरस रही थी वर्षा की जगह हड्डिया बरस रही पानी नहीं गिर रहा था चारो तरफ हड्डिया ही हड्डिया !</div><br /><div>बिल्ली ने कहा ' मुरख हे तू ! हमने भी शास्त्र पढ़े हे , पुरखो से सुना हे , की कभी कभी वर्षा में पानी नहीं गिरता , चूहे बरसते हे . लेकिन हड्डिया ? किसी शास्त्र में नहीं लिखा हे . </div><br /><div>इसी बात पर दोनों की लडाय हो गई और आज तक पूरी नहीं हुई </div><div>कुतो के शास्त्र अलग , बिल्लीयो के शास्त्र अलग . सब शास्त्र हमारी वासनाओ के शास्त्र हे </div><br /><div></div><div>आप भी सपने देखते हो ! ....... </div><div>फिर लडाय भी होती हे तो फिर आप के शास्त्र अलग होगे </div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-68592759808098929272009-05-17T09:12:00.000-07:002022-10-11T08:22:07.012-07:00जिन्दगी का हिसाब किताब<div><br /><br /><span>एक</span> साल में 365 दिन<br /><br /><span>दस</span> साल में 3650 दिन<br /><span>सो</span> साल में 36500 दिन<br /><br /><br /><br />अब मुश्किल से हम 80 साल तक जीते हे 80 साल के दिन हुये 29200 उस में से आधे दिन तो निद्रा और भोजन में चले जाते हे बाकि बचे 14600 अ़ब जो भी माया जाल हे वह इतने ही दिनों में करनि हे संपति , जमीन, पद , अब आप को एक दिन में कितने Rs बनाये तो आप करोड़ पति बन सकते हे गिनती करके देखे जेसे मेरी बर्थ ओफ डेट <br /><br />wolframalpha.com</div><div> मे ये आसनी से होता हे<br />सर्च बॉक्स में अपनी बर्थ ऑफ़ डेट इंटर करे<br /><img alt="" border="0" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5338205757817045426" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQlMhA5AmpQiopPbfeTZwJstuvvk5nQnkESgdEOwCNSWg2zMy8SIawMJ9OYr8Ir03IGbLJ_aJnv7XfThflY64ITTsVLBM6GJGJKl6OX6Bx_sQiEgAAOohGlFu9nut5EWTwubhApo9XdjwP/s320/wolfram+alpha+18-5-09.jpg" style="cursor: hand; display: block; height: 320px; margin: 0px auto 10px; text-align: center; width: 299px;" /><br /><p><span>मे</span> ने 32 साल ओर 8 महिने मे 19 दिन यानी टोटल 11949 दिन बिताए </p><p>ओर अब 17251 दिन मेरे पास बाकी बचे हे </p><p>आप के पास कितने दिन बाकी हे -------------------------------- ? </p><br /><p>जिन्दगी का हिसाब किताब आखिर मे<b> </b><span style="font-size: 180%;"><span style="color: red; font-size: 100%;">शुन्य</span> </span>मे आता हे . </p><p>किसी भी <b>C. A.</b> से पुछ लो </p><br /><br /><br /><br /><p></p><br /><br /><br /><br /><p></p></div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-54022253730377821222009-05-11T00:18:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.455-08:00दुनिया के नक्शे में आप कहा हे<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheCGDAG52fck_QX1vyVaYiW-kklvWEYLpIOSS8p6gI6V2KRQNlXY_PntSp72e3zlILzb7SYHAMelMXms6Wwehyphenhypheng7CCBXinB7RfsJf8EF6XZXwPHaqWDfjRf0FvMrnwVl9CUiwYdQ5u245x/s1600-h/world_map.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5363410041062572098" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 260px; CURSOR: hand; HEIGHT: 192px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheCGDAG52fck_QX1vyVaYiW-kklvWEYLpIOSS8p6gI6V2KRQNlXY_PntSp72e3zlILzb7SYHAMelMXms6Wwehyphenhypheng7CCBXinB7RfsJf8EF6XZXwPHaqWDfjRf0FvMrnwVl9CUiwYdQ5u245x/s320/world_map.jpg" border="0" /></a><br /><div><a href="http://ezyswing.com/_server/vacations/world_map_political.gif"></a><span class="">सोक्रेटीज </span>के पास एक आदमी मिलने आया । वह एक बड़ा धनपति था और ' एथेंन्स ' में उससे बड़ा कोय धनपति नही था उसकी अकड़ स्वाभाविक थी रस्ते पर भी चलता था , तो उसकी <span class="">चाल </span>अलग थी बात करता था , लोगो की तरफ़ देखता था , तो उसका ढंग अलग था हर जगह उसका अंहकार था । वह सोक्रेटीज से मिलने आया ।<br /><div><br /><br /><div>सोक्रेटीज ने उसे बिठाकर कहा की <span class="">बेठो, </span>में <span class="">अभी </span>आया , भीतर गया और दुनिया का <span class="">नक्शा </span>ले आया और पूछने लगा इस दुनिया के नक्शे पर <span class="">युनान </span>कहा हे ? -छोटासा सा युनान ! उस आदमीने बताया , पर उसने कहा <span class="">यह </span>पूछते क्यो हो ? वह थोड़ा बेचेने हुआ सोक्रेटीज ने कहा और मुझे बताओ की युनान में एथेंन्स कहा हे ? <span class="">बस </span>एक छोटा - सा बिन्दु था । पर उस आदमीने कहा पूछते क्यो हो ? सोक्रेटीज ने कहा , <span class="">बस </span>एक सवाल और ! इस एथेंन्स में तुम्हारा महेल कहा हे ? तो तुम क्यो अब इतने अकड़े हो ? </div><br /><br /><div>और यह पृथ्वी का नक्शा सब कुछ नही । कोई चार अरब सूर्य हे और इन चार अरब सूर्यो की अपनी अपनी पृथ्वियां हे । और अब विज्ञानिक कहेते हे चार अरब भी हम जहा तक जान पाते हे , वहा तक हे आगे विस्तार का कोय अंत नहीं <span class="">हे . जितना हमारा दूरबिन सशक्त होते जाते हे उतनी बड़ी सीमा होती जाती हे . सीमा का कोइ अंत नहीं मालूम होता . तुम उसमे कहा हो ? लेकिन बुद्धि बड़ी अकडी हे छोटा सा सर हे उस सर में छोटी सी बुद्धि हे - कोइ डेढ किलो वजन हे खोपडी का . उस डेढ किलो वजन में सारा सब कुछ हे पर बड़ी अकड़ हे बड़े तर्क हे </span></div><br /><div></div><br /><div></div><br /><div>आप भी देखे दुनिया के नक्शे में आप कहा हे </div></div></div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-22943033608787995682009-05-07T23:43:00.000-07:002022-10-11T08:09:32.395-07:00विज्ञापन की कला<br /><div>विज्ञापन की सारी कला </div><div>ही इस बात पर आधारित है : </div><div> </div><div>दोहराए जाओ। फिर चाहे करीना का सौन्दर्य हो, </div><div>चाहे फिल्म स्टार का, सबका राज़ लक्स टायलेट साबुन में है। </div><div> </div><div>दोहराए जाओ <br /></div><div>अखबारों में फिल्मों में, रेडियो पर, </div><div>टेलीविजन पर और धीरे-धीरे लोग मानने लगेंगे।</div><div> </div><div>और एक अचेतन छाप पड़ जाती है। </div><div> </div><div>और फिर तुम जब बाजार में साबुन खरीदने जाओगे </div><div>और दुकानदार पूछेगा, कौन-सा साबुन ? </div><div> </div><div>तो तुम सोचते हो कि तुम लक्स टायलेट खरीद रहे हो, </div><div>लक्स टायलेट दे दो। तुम यही सोचते हो, यही मानते हो कि तुमने खरीदा, </div><div>मगर तुम भ्रांति में हो। पुनरुक्ति ने तुम्हें सम्मोहित कर दिया।नये-नये </div><div> </div><div>जब पहली दफा विद्युत - Electricity </div><div>के विज्ञापन बने तो थिर होते थे।</div><div> </div><div>फिर वैज्ञानिकों ने कहा कि </div><div>थिर का यह परिणाम नहीं होता। </div><div> </div><div>जैसे लक्स टायलेट लिखा हो बिजली के अक्षरों में </div><div>और थिर रहे अक्षर, तो आदमी एक ही बार पढ़ेगा।</div><div> </div><div> लेकिन अक्षर जलें, बुझें, जले, बुझें, तो जितनी बार जलेंगे,</div><div> बुझेंगे, उतनी बार पढ़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।</div><div> </div><div> तुम चाहे कार में ही क्यों न बैठकर गुजर रहे होओ, </div><div>जितनी देर तुम्हें बोर्ड के पास से गुजरने में लगेगी, </div><div> </div><div>उतनी देर में कम-से-कम दस-पंद्रह दफा अक्षर जलेंगे, </div><div>बुझेंगे, उतनी बार पुनरुक्ति हो गयी।</div><div> </div><div> उतनी पुनरुक्ति तुम्हारे भीतर बैठ गयी।</div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-69014591342205267232009-05-04T08:06:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.460-08:00सम्यक आसन , भोजन ,और निद्रा .<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQqTqT3ko2klHMSpGI_SvmhZkIEA7ntSYbJ18ztCgIhpHRNFj_b3UuU8FEwhMetwwDVcaBemu5mdLmhNad8N3xZ5u2n1hvSdg-BnbBXfsm7825od9uXX6ykTyGLFlBfXlh_sDKLpIHRlCU/s400/yoga+pose+for+breast+lift.jpg"><img style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 251px; CURSOR: hand; HEIGHT: 376px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQqTqT3ko2klHMSpGI_SvmhZkIEA7ntSYbJ18ztCgIhpHRNFj_b3UuU8FEwhMetwwDVcaBemu5mdLmhNad8N3xZ5u2n1hvSdg-BnbBXfsm7825od9uXX6ykTyGLFlBfXlh_sDKLpIHRlCU/s400/yoga+pose+for+breast+lift.jpg" border="0" /></a> तीन सूत्र सम्यक आसन , भोजन ,और निद्रा ।<br /><p>जिस पर टिका हे हमारे जीवन का आधार </p><br /><p>सम्यक आसन </p><p><br />बहार शरीर न हिले - डुले , ऐसे बेठ जाओ , थिर यह तो केवल शुरुआता हे फिर भीतर न मन हिले<br />कोई कंपन न हो जब मन और तन दोनों नहीं हिलते तब आसन , आसन में अर्थ सिर्फ शारीरिक आसन का नहीं हे । भीतर ऐसे बेठ जाओ की कोई हलन - चलन न हो बहार का आसन तो भीतर के आसन के लिए सिर्फ एक आयोजन हे । तब बहार भीतर तुम रुक गये रुक गये यानि अब कोय वासना नहीं हे । अब कोय आंकांक्षा नहीं हे अ़ब चित में चंचल लहेरे नहीं उठ रही हे अब चित एक झील हो गया हे । </p><br /><p>सम्यक भोजन</p><br /><p><span class="">और </span>उतना ही भोजन लो जितना सम्यक हे । व्यथँ की चीजे मत खाते फिरो जो जरुरी हे आवश्यक हे । वह पूरा कर लो कुछ लोगो हे जिनका कुल जीवन में काम इतना ही हे : एक तरफ से डालो भोजन और दूसरी तरफ से निकालो भोजन इतना ही उनका काम हे । अपने भोजन को संभालो हम केवल मुह से ही नहीं आँख , कान , नाक से भी भोजन कर ते हे उसे संभालो जिसका आसन सम्हल गया जो बिलकुल शांत होकर बेठ ने में कुशल हो गया जिसके भीतर विचार की तरंग चली गयी , जिसका भोजन सम्हल गया जो देह को इतना देता हे जो आवश्यक हे न कम न ज्यादा कम भी मत देना कम और ज्यादा ये दोनों एक सिक्के के दो पहेलु हे . एक ज्यादा पर खा रहा हे एक कम खा रहा हे दोनों ही अति पर चले गये हे होना हे मध्य में सम्यक आसन , और भोजन सम्हाल लो फिर तीसरी चीज सम्हाल ने की क्रिया शुरू होती हे , निद्रा । </p><br /><p>सम्यक निद्रा<br /><span class=""></span></p><br /><p><span class=""></span>निद्रा सम्हाल ने का क्या अथँ होगा ? यह सूत्र बड़ा गहेरा हे निद्रा सम्हाल ने का क्या अथँ हे जेसे जागते में विचार शांत हो गये इसे ही स्वप्न भी शांत हो जाये सोते में क्योकि स्वप्न भी विचारो के कारण उठते हे । विचारो का प्रति फलन विचार का ही प्रतिफलन <span class="">हे। </span>स्वप्न विचारो की ही गूंज -अनगुंज हे दिनभर खूब सोचते हो तो रातभर खूब सपने देखते हो । जो भोजन के शोखीन हे वो रात सपनों में भी भोजन कर ते हे राज महेलोमे उनको निमंत्रण मिलता हे . जो कामी हे वो काम वासना के स्वप्न देखते हे । जो धनलोलुप हे वह धन लोलुपता के स्वप्न देखते हे जो पद लोलुप हे वह सपने में सम्राट हो जाते हे हमारे सपने हमारे चीत के विकारों के प्रति फलन हे । </p><br /><p><br />जब तुम शांत होकर बेठना सिखा जाओगे , भोजन संयत होजाये गा ( जोभी हम भीतर ले रहे हे वोह भोजन हे ) तुम्हारी खोपडी में कोई व्यथं की अफवाह डाल जाये तो तुम इनकार ही नहीं कर ते<br />हम कान लगाकर सुनते हे । हा भाई और सुनाओ ॥? आगे क्या हुआ ये सब आहार हे , वही देखो जो दिखाना जरुरी हे । वही सुनो जो सुन ना जरुरी हे । वही बोलो जो बोलना जरुरी हे ।<br />सम्यक भोजन से नीद सध जायेगी फिर नीद में भी तुम शांत रहो गे । स्वप्न विदा हो जाये गे । और एक अपूर्व धटना बनेगी जिस दिन नीद में स्वप्न विदा हो जाते हे उस दिन तुम सोते भी हो और जागे भी रहेते <span class="">हो । </span></p><span class=""></span><br /><p>हर चीज में मध्य को खोज लो ना ज्यादा खाओ ना कम । ना ज्यादा सोओ न कम । ज्यादा न बोलो न <span class="">कम । </span>मध्य को खोजते जाओ । आप ने देखा हे कभी रस्सी पर नट चलता हे बस उसी तरह अपने को संभालते रहो रस्सी पर , मध्य में न ज्यादा दाये झुको न बाये झुको , झुके के गिरे<br />ठिक - ठीक मध्य सध जाता हे । तो श्वास भी मध्य में चलती हे । </p><br /><p>आप भी देखे आप मध्य में हे या दाये बाये<br /></p>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-14045844516400237222009-04-30T00:55:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.462-08:00सिकंदर<a href="http://kataragama.org/pix/alexander_coin_250.jpg"><img style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 176px; CURSOR: hand; HEIGHT: 154px" alt="" src="http://kataragama.org/pix/alexander_coin_250.jpg" border="0" /></a><br /><div>सिकंदर मरा जिस् नगर से उसकी अर्थी निकाली गई । वहा के लोगो ने देखा की अर्थी मे से सिकंदर के हाथ बाहर रखे गये थे । सबने पुछा तो पता चला की सिकंदर ने मरनेसे पहेले कहा था मेरे हाथ बाहर रखना ताकि लोगो को पता चले के में भी खली हाथ जा रहा हु । </div><br /><br /><div></div><div>क्या कोइ एसी संपदा नहीं हे जिसे मृत्यु मिटा न सके </div><br /><div>किसी भी सम्पदा को <span class="">मृत्यु </span>की कसोटी पर रखना और देखना ये सोना हे या मिटी</div><br /><div><span class="">जो </span>मृत्यु के बाद <span class="">बचता </span>हे वो तुम हो </div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-66336805459505360552009-04-28T00:36:00.000-07:002022-10-11T08:10:03.251-07:00में कोन हु<div>ओस्पेन्सकी ने गुरजिएफ से मिलनेसे पहेले एक बहोत कीमती किताब " टशियम आरगेनम " लिख चुकाथा पश्चिम के ईतीहास में लिखी गयी तीन किताबो में एक महत्वपुणँ किताब हे । और गुरजिएफ को कोय जानता भी नहीं था एक अनजान फ़कीर था जब ओस्पेन्सकी मिलने गया गुरजिएफ से कोय बीस मित्रो के साथ चुपचाप बेठा हुआ था । ओस्पेन्सकी भी थोडी देर बेठा फिर घबडाया न तो किसी ने परिचय कराया की कोन हे न गुरजिएफ ने पुछा की केसे आये हो बाकि जो बीस लोग थे वह भी चुपचाप बैठे थे तो चुपचाप ही बैठे रहे । पाच सात मिनिट के बाद ओस्पेन्सकी बेचनी बहोत बढ़ गयी । न वहा से उठा सके न बोल सके आखिर हिम्मत जुटाकर उसने कोई बीस मिनिट तक तो बर्दास्त किया , फिर उसने गुरजिएफ से कहा की माफ़ करिये यह क्या हो रहा हे ? आप मुझसे यह भी नहीं पूछते की में कोन हु ?</div><div><br /><br /><div>गुरजिएफ ने आंखे उठा कर ओस्पेन्सकी की तरफ देखा और कहा , तुमने खुद कभी अपने से पुछा हे की में कोन हु और तुम ने ही नहीं पूछा , तो मुझे क्यों कष्ट देते हो ? या तुम्हे अगर पता हो की तुम कोन हो तो बोलो । तो ओस्पेन्सकी के निचे से जमीन खिसकती मालूम पड़ी अब तक तो सोचा था की पता हे की में कोन हु ओस्पेन्सकी ने सब तरह से सोचा कही कुछ पता न चला की में कोन हु ? । </div><br /><br /><div><br />गुरजिएफ ने कहा बेचनी में मत पडो कुछ और जानते होतो उस संबंध में ही कहो । कुछ नहीं सूझा तो गुरजिएफ ने एक कागज उठाकर दिया और कहा . हो सकता हे संकोच होता हो पास के कमरे में चले जाओ इस कागज पर लिख लाओ जो -जो जानते हो उस संबंध में फिर हम बात <span>न करेगे और जो नहीं जानते हो उस संबंध में कुछ बाते करेगे ओस्पेन्सकी कमरे में गया उसने लिख हे सर्द रात थी लेकिन पसीना मेरे माथे से बहना शुरू हो गया पहेली दफा में पसीने - पसीने हो गया पहेली दफा मुझे पता चला की जानता तो में कुछ भी नहीं हु . सब शब्द मेरी आंखो में धूम ने लगे और मेरे ही शब्द मुझसे कहेने लगे </span></div><br /><div></div><br /><br /><div></div><br /><div><span>ओस्पेन्सकी तुम जानते क्या हो ....... </span></div><br /><div></div><br /><br /><div></div><br /><div><span>और तब इसने वह कोरा कागज ही लाकर गुरजिएफ के चरणो में रखा दिया और कहा में कुछ नहीं जानता गुरजिएफ ने कहा अब तू जान ने की और कदम उठा सकता हे । </span></div><br /><br /><div><span></span></div><br /><div><span>आप क्या जानते हे ..... ?</span></div><br /><div></div></div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-86905691350619466842009-04-27T00:07:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.470-08:00हमारी पकड़<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj5QX625UsCU3whNEf3E5fnkPcpCw2UqP274atDA4_TCEzp2gLcY_y5gP9EZ5C3GAFXG6GoBpWxhSnUf9mx21NCydva3ONZns1fsaotVz2mPQP1KUfLGCmElMqYdeCkGwWuk_PYNA_NGjRD/s1600-h/cave.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5329305932687132258" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 200px; CURSOR: hand; HEIGHT: 148px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj5QX625UsCU3whNEf3E5fnkPcpCw2UqP274atDA4_TCEzp2gLcY_y5gP9EZ5C3GAFXG6GoBpWxhSnUf9mx21NCydva3ONZns1fsaotVz2mPQP1KUfLGCmElMqYdeCkGwWuk_PYNA_NGjRD/s200/cave.jpg" border="0" /></a> अंधेरी रात में एक आदमी एक पहाड़ के कगार से गिर गया । अंधेरा था भयानक नीचे खाय थी बड़ी । किसी व्रुक्ष की जड़ो को पकड़ कर लटका रहा । चिल्लाया , चीखा , रोया । अंधकार धना था दूर-दूर तक कोई भी न था । सर्द रात थी कोय उपाय नहीं सुझता था व्रुक्ष की जड़े हाथो से छुटती मालूम पड़ती थी हाथ ठंडे होने लगे , बर्फीले होने लगे रात गहेराने लगी वह आदमी चीखता चिल्लाता हे व्रुक्ष की जड़ो को पकडे हे सारी ताकत लगा रहा हे ठीक उसकी हालत वेसी थी जेसी हमारी हे पकडे हे धन को पद को जोर से पकडे हुए हे की छुट न जाये कुछ ।<br />लेकिन कब तक पकडे रहेता आखिर पकड़ भी तो थक जाती हे । और मजा तो ये हे की जितना जोर से पकडो उतने जल्दी थक जाते हे जोर से पकडा था , उंगुलियों ने जवाब देना शुरु कर दिया धीरे धीरे आंखो के सामने हाथ खिसक ने लगे । लेकिन कब तक पकडे रहेता आखिर पकड़ भी तो थक जाती हे । और मजा तो ये हे की जितना जोर से पकडो उतने जल्दी थक जाते हे जोर से पकडा था , उंगुलियों ने जवाब देना शुरु कर दिया धीरे धीरे आंखो के सामने हाथ खिसक ने लगे जड़े हाथ से छुटने लगी चिल्लाया रोया लेकिन कोय उपाय नहीं रहा आखिर हाथो से जड़े छूट गयी ।<br />लेकिन तब उस घाटी में हंसी की आवाज गूंज उठी क्योकि नीचे कोय खाय नहीं थी जमीन थी अंधेर में दिखाय नहीं पड़ती थी वह नाहक ही परेसान हो रहा था और इतनी देर जो कष्ट उठाया वो अपनी पकड़ के कारण ही उठाया वह घाटी तो चीख पुकार से गूंज रही थी हंसी की आवाज से गूंज उठी वह आदमी अपने पर हंस रहा था ।<br />जिन लोगो ने पकड़ के पागलपन को छोड़ कर देखा हे वे हँसे हे क्योकि जिस से वो भयभीत हो रहे थे वह हे ही नहीं । जिस म्रृत्यु से भय भीत हम हो रहे हे वह हमारी पकड़ के कारण ही प्रतीत होता हे ।<br />पकड़ छुटते ही वह नहीं हे । जिस दुख से हम भयभीत हो रहे हे वह दुख हमारी पकड़ का हिस्सा हे ।<br />पकड़ से पैदा होता हे पकड़ छुटते ही खो जाता हे । और जिस् अंधेंरें में हम पता नहीं लगा पा रहे हे<br />की कहा खड़े होंगे वही हमारी अंतरात्मा हे । सब पकड़ छुटते हे हम अपने में ही प्रतिष्ठित हो जाते हे<br /><div></div><br /><div>आपने भी तो कूछ पकडा हुआ नहीं हे ना..... छोड़ दो उसे फिर हँसी आयेगी । </div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-53290252752167712062009-04-26T03:35:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.473-08:00उपवास<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEio8Pte_syVYJ2QiioCOj8zstEel0PX74Q0T-P4vsFYShi8oa29GqCmFAsUiwUUcY_84Pa4t9kj0ApT0WweodBehEYpdkjRpOLBeeHZp4UUY4f1aFqjLHimvcnhULdJeVZDgRputiiGZYui/s1600-h/upvash.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 280px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEio8Pte_syVYJ2QiioCOj8zstEel0PX74Q0T-P4vsFYShi8oa29GqCmFAsUiwUUcY_84Pa4t9kj0ApT0WweodBehEYpdkjRpOLBeeHZp4UUY4f1aFqjLHimvcnhULdJeVZDgRputiiGZYui/s320/upvash.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5366393163962390146" /></a><br /><br /><div><br />आज एक दोस्त के घर जाना हुआ दोस्त बहार गया था तो उसके इंतजार में उसके<br />दादाजी के पास बेठा बातो बातो में उसके दादाजी ने कहा की आप उपवास रखते हो मेने सोचा क्या बोलू हा या ना मगर मेरे कूछ बोलने से पहेले ही उसने कहा आज कल के लड़के कुछ भक्ति वाला काम नहीं करते वेसे भी मेरी ईमेज नास्तिको वाली हे अब दादाजी से में नहीं पुछ सका की आप उपवास का मतलब समज ते हे ।<br />मगर आप से जरुर पुछु गा की आप उपवास का मतलब समजते हे<br />उपवास का अर्थ होता हे अपने पास होना अपनी आत्मा के पास होना इसलिए जो व्यक्ति अपने पास होता हे उसे भूख कम लगती हे अपने पास होना याने आनंद में होना शरीर के पास होना याने दुख में हो ना दुखी आदमी अपने को भर ने की चेष्टा करता हे तो वह भोजन से भरेगा जब आनंद से भर जाओगे तो भूख का पता भी नहीं लगता याद भी नहीं आती बच्चे अक्सर खेलने में अपने पास होते हे उसे भोजन की याद भी नहीं आता<br /><br />चित्रकर ईतना डूब जाता हे अपने चित्र में उसे भोजन की याद तक नहीं आती , संगीतकर डूब ता हे संगीत में , सायंटिस्ट डूब ता हे अपने प्रयोग में बुद्ध, महावीर , जीसस , महम्मद पैगम्बर , नानक , कबीर ,कृष्ण सबने पा लिया आपने आप को उतर गए उपवास में अपनी आत्मा के पास<br /><br />मगर हमने उपवास का अलग मतलब ही नीकाल लिया हे<br />पंडित , पुरोहित , मोलवी , चर्च के फ़ाधर ने अपनी दुकान चलाने के रास्ते निकाले हे शायद<br />वो भी बेचारे क्या करे वो हे लकीर के फ़कीर उसे खुद भी पता नहीं वो क्या कह रहे हे<br />उपवास करना नहीं होता वो तो होता हे अपने आप<br />ब्लॉग में कभी मेरा भी उपवास हो जाता हे<br /></div><br /><div></div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-71393668153475335512009-04-24T08:32:00.000-07:002022-10-11T08:11:16.841-07:00आज के हालात<p> नदी में डूबते हुए आदमी </p><p>ने पुल पर चलते हुए आदमी को </p><p>आवाज़ लगायी "बचाओ बचाओ" पुल पर </p><p>चलते आदमी ने निचे रस्सी फेकी और कहा </p><p>आओ नदी में डूबता हुआ आदमी रस्सी नहीं </p><p>पकड़ पा रहा था रो रो कर चिल्ला रहा था में</p><p> मरना नहीं चाहता ज़िंदगी बड़ी मेहेंगी है </p><p>कल ही तो मेरी एक कंपनी में नौकरी लगी है ..</p><p> </p><p> इतना सुनते ही पूल बराबर चलते आदमी ने </p><p>अपनी रस्सी खीच ली और भागते भागते वो </p><p>कंपनी में गया उसने वहां बताया की अभी </p><p>अभी एक आदमी डूबकर मर गया है और </p><p>तरह आपकी कंपनी में एक है जगह खाली कर गया है ... </p><p> </p><p>में बेरोजगार हूँ मुझे ले लो ..</p><p>रेसप्सनिस्ट बोली दोस्त तुमने देर कर दी, </p><p>अब से कुछ देर पहले हमने एक आदमी को </p><p>लगाया है जो उसे धक्का दे कर तुमसे पहले यहाँ आया है!<br /><br /><br /></p>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-26225064214733066492009-04-23T06:56:00.000-07:002022-10-11T08:14:27.142-07:00Ticket to Heaven - स्वर्ग जाने की टिकिट<br /><br /><div><div>सालो से स्वर्ग में मुक़दमा चल रहा था की </div><br /><br /><div>स्वर्ग में आने की टिकिट अब ईन्टरनेट पर भी मिलनी चाहिये<br />आज तक ये अधिकार सिर्फ मंदिर , मस्जिद , चर्च वालो कोही मिले हुए थे<br />धर्म के ठेकेदारोने बहोत ही हो हल्ला किया . उसने दलील में कहा की ऐसा हुआ तो हमारा धंधा<br />बंध हो जायेगा मगर हमारे वकील ने सामने दलील देते हुए कहा की समय के साथ बदलाव आना<br />जरुरी हे ऊपर से स्वर्ग की हालत भी खस्ता हे ये धर्म के ठेकेदारो सारा पैसा खा जाते हे </div><br /><div>स्वर्ग में सदियो से रिनोवेसन नहीं भी नहीं हुआ </div><br /><div><span>ईन्टरनेट </span>के माध्यम से बुकिंग करे गे तो हिसाब भी पूरा मिलेगा<br />स्वर्ग की इनकम भी तेजीसे बढेगी और सुविधा भी बढेगी इस दलील पर हम ये मुक़दमा जित गए</div><br /><br /><div>मेरे पास स्वर्ग की टिकिट बेचने के अधिकार हे आप मेसे कोय भी खरीद सकता हे<br />जल्दी कीजीये मंदी की वजह से अभी 50% डिस्काउंट चल रहा हे ।</div><div> </div><div>जब तक आपके भीतर <br /><br />लालच और डर <br /><br />बना रहेगा तब तक स्वर्ग जानेकी टिकिट बिकती रहेंगे <br /></div></div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-82696056239552243352009-04-21T02:52:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.481-08:00HABIT - आदत<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWi_imQDc9xlQIXVA5pi9NMayJnrxGBe_oumn-DWCUls9caVoLBfQxqJv3P1edUf7WuBHGzoGBnA2DRHmoBIuMqqUnNuz93snXvkxIjmTg0yWX5jxUhtoCc2vfK07ukicnlq8rqzDS1dHL/s1600-h/habit-male-biting-nails-400a062507-300x300.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5327091533726166162" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 188px; CURSOR: hand; HEIGHT: 186px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWi_imQDc9xlQIXVA5pi9NMayJnrxGBe_oumn-DWCUls9caVoLBfQxqJv3P1edUf7WuBHGzoGBnA2DRHmoBIuMqqUnNuz93snXvkxIjmTg0yWX5jxUhtoCc2vfK07ukicnlq8rqzDS1dHL/s200/habit-male-biting-nails-400a062507-300x300.jpg" border="0" /></a><br /><div align="left"><span style="font-family:verdana;">एक आदमी को सिगरेट पीने की आदत हे , उसे सारी दुनिया बुरा कहेती हे . दुसरे को माला फेर ने की आदत हे , उसे सारी दुनिया अच्छा कहेती हे . जो सिगरेट ना पिए तो मुसीबत मालूम पड़ती हे . जो माला फेर ताहे अगर न फेरने दो तो मुसीबत मालूम पड़ती हे दोनों गुलाम हे ।<br />एक को उठते ही सिगरेट चाहिए , दुसरे को उठते ही माला चाहिए माला वाले को माला न मिले तो माला की तलफ लगती हे अगर न फेरने दो तो मुसीबत मालूम पड़ती हे , दोनों गुलाम हे । </span></div><div align="left"><span style="font-family:Verdana;"></span> </div><div align="left"><span style="font-family:verdana;"><span class="">एक</span> को उठते ही सिगरेट चाहिए. एसे बुनियाद में बहोत फासला नहीं हे सिगरेट भी एक तरह का माला फेरना हे धुआं भीतर ले गए, बाहर ले गये ,भीतर ले गए, बाहर ले गये - मनके फिरा रहे हे ,बाहर ,भीतर . धुएं की माला हे . जरा सुक्ष्म हे . मोती के माला स्थुल हे . कोय आदत इसी नहो जाए की मालिक बन जाये . मालकियत बचाकर आदत का उपयोग कर लेना यही साधना हे मालकियत खो दी , और आदत सवार हो गई तो तुम यंत्रवत हो गए अब तुम्हारा जीवन मूर्च्छित <span class="">हे । </span></span></div><span style="font-family:verdana;"><div align="left"><br /><span class="">इसे</span> लोग भी हे जो पूजा न करे रोज , तो बेचेनी लगती हे , उसे पुछो की पूजा करने से कुछ आनंद मिलता हे ? वो कहते हे , आनंद तो कुछ मिलता नहीं लेकिन न करे तो बेचेनी लगती हे<br />आदते बुरी होया भलि, इससे कोई भेद नहीं पड़ता जब आदते मालिक हो जाये तो बुरी हे .तुम मालिक रहो तो कोय आदत बुरी नही गुलामी बुरी हे मालकियत भली <span class="">हे । </span></div><div align="left"><br /><span class="">संसार</span> में कुछ भी बुरा नहीं हे स्वामित्व तुम्हारा हो तो संसार में सभी कुछ अच्छा हे स्वामित्व खो गया तुम गुलाम हो जाओ तो आदते बुरी हो या भलि, इससे कोई भेद नहीं पड़ता जब आदते मालिक हो जाये तो बुरी हे .तुम मालिक रहो तो कोय आदत बुरी नही गुलामी बुरी हे मालकियत भली हे जीवन में आदते जरुरी हे . बस इतना ध्यान रखना की आदत मालिक न हो जाये . स्वामित्व खो गया तुम गुलाम हो जाओ तो वह गुलामी चाहे कितनी ही कीमती हो , खतरनाक हे . हीरे - जवाहरात लगेहो जंजीरों पर तो उसको आभुषण मत समझ लेना वे खतरनाक हे वह महेगा सोदा हे ।<br /><br /><strong>अपने को गंवाकर इस जगत में कमाने जेसा कुछ भी नहीं हे</strong> । </span></div><div align="left"><span style="font-family:Verdana;"></span></div><div align="left"><span style="font-family:Verdana;">.</span></div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-84937111148150366302009-04-19T03:12:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.483-08:00स्व + भावः<style type="text/css"><br /><!--<br />.style2 {color: #333333}<br />body {<br /> background-color: #FFFFFF;<br />}<br />--><br /></style><br /><br /><div align="left"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixq5C9_3uRrzhpXdeJ5_gp57CS0duxTzLl6VbjFlYWAkxhZkx8dCWP81FglS478A9G8UwjlJATrjxUTdfdp4VhXt0s9gXpV3Q9ZwaQRrgabBgvjrTJ92SgTRrqgGZ5p-2eTShdce-9xla9/s1600-h/buddha=+svabhav.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5326346547800317026" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 180px; CURSOR: hand; HEIGHT: 240px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixq5C9_3uRrzhpXdeJ5_gp57CS0duxTzLl6VbjFlYWAkxhZkx8dCWP81FglS478A9G8UwjlJATrjxUTdfdp4VhXt0s9gXpV3Q9ZwaQRrgabBgvjrTJ92SgTRrqgGZ5p-2eTShdce-9xla9/s320/buddha=+svabhav.bmp" border="0" /></a><br /> <span class="style2">एक आदमी ने बुध्ध के मुह पर थूक दिया </span></div><div align="left" class="style2">उन्होंने अपनी चादर से थूक पोंछ लिया <br />और उस आदमी से कहा , कुछ और कहेना हे ? <br />बुध्ध ने कहा , यह भी तेरा कुछ कहेना हे , </div><div align="left" class="style2">वह में समज गया ; कुछ और कहेना हे ?<br />आनंद बुध्ध का शिष्य था , बहोत क्रोधित हो गया , </div><div align="left" class="style2">वह कहें ने लगा , यह सीमा के बहार बात हो गयी </div><div align="left" class="style2"><br />बुध्ध का चचेरा भाई था उसकी भुजाए फड़क उठी , उसने कहा बहोत हो गया<br />वह भूल ही गया के वो भिक्षु हे , सन्यासी हे बुध्ध ने कहा की उसने जो किया वो क्षम्य हे । </div><div align="left" class="style2">तू जो कर रहा हे वो और भी खतनाक हे उसने कुछ किया नहीं सिर्फ़ कहा हे </div><div align="left" class="style2"><br />कभी ऐसी घडियां होती हे जब तुम कुछ कहेना चाहते हो , लेकिन कह नहीं सकते <br />शब्द छोटे पड़ जाते हे . किसी को हम गले लगा लेते हे .कहेना चाहते थे , लेकिन इतना ही कहने से कुछ काम न चलता की मुझे बहोत प्रेम हे - वह बहुत साधारण मालूम पड़ता हे - तो गले लगा लेते हे<br />इस आदमी को क्रोध था वह गाली देना चाहता था लेकिन गाली इसको कोई मजबूत नहीं मिली <br />इसने थूक कर कहा . बात समज में आ गयीहम समज गए इसने क्या कहा अब इसमे झगडे की क्या बात हेउस आदमीसे बुध्ध ने पूछा आगे और कुछ कहे ना हे ॥?</div><div align="left" class="style2"><br />वह आदमी शमिँदा हुआ . वह बुध्ध के चरणों में गिर पड़ा उसने कहा मुझे क्षमा कर दे .<br />में बड़ा अपराधी हुं और आज तक तो आपका प्रेम मुझ पर था , अब मेने अपने हाथ से गंवा दिया .<br /> बुध्ध ने कहा की तू उसकी फिकर मत कर क्योकि में तुझे इसलिए थोड़े ही प्रेम करता था की मेरे ऊपर थूकता नहीं थामुजसे प्रेम वैसा ही हें जेसे की फुल खिलता हें और सुगंध बिखर जाती हें <br />अब दुश्मन पास से गुजरता हें उसे भी वह सुगंध से भर देगी वह खुद ही रुमाल लगा ले , बात अलग . मित्र निकल ताहे थोडी देर ठहर जाए फुल के पास और उनके आनंद में भागीदार हो जाए बात अलग कोई न निकले रास्ते से तो भी सुगंध बहेती रहेगी </div><div align="left" class="style2"><br />क्योकि मेरा स्वभाव प्रेम हें </div><div align="left" class="style2"><br />आप भी देखे आप का स्वभाव क्या हें </div><div align="left" class="style2"><br />स्वभाव यानि स्व + भावः आप को क्या अच्छा लगता हें<br />प्रेम , शान्ती, करुना , लोभ , दया , लालच , ईषा , क्रोध ................ <br />जेसा आप का स्वभाव होगा वेसी ही आप के आस पास सुगंध होगी<br /><br /><br /></div><div align="left" class="style2"><br /></div>Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-63394561924472217522009-04-18T09:09:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.487-08:00गाँव के नेताजीएक आदमी ने गाँव के नेता जी को किसी बात पर सच्ची बात कह दी ।<br />कह दिया कि उल्लू के पटृठे हो!<br /><br />अब नेताजी को उल्लू का पटृठा कहो तो नेता जी कुछ ऐसे ही नहीं छोड देगें।<br />उन्होनें अदालत मे मुकदमा मानहानि का चलाया।मुल्ला नसरुद्दीन नेता जी के पास ही खडा था तो उसको गवाही मे लिया ।<br /><br />जिसने गाली दी थी नेताजी को , उसने मजिस्ट्रेट को कहा कि होटल में कम से कम पचास लोग ,जरुर मैने उल्लू का पटृठा शब्द का उपयोग किया है; लेकिन मैने किसी का नाम नही लिया । नेता जी कैसे सिध्ध कर सकते हैं कि मैने इन्ही को उल्लू का पटृठा कहा है।<br /><span class=""></span><br />नेता जी ने कहा : सिध्ध कर सकता हूँ। मेरे पास गवाह हैं। मुल्ला को खडा किया गया ।<br /> मजिस्ट्रेट ने पूछा कि मुल्ला , तुम गवाही देते हो कि इस आदमी ने नेता जी को उल्लू का पटृठा कहा है! मजिस्ट्रेट ने कहा : तुम कैसे इतने निशिचत हो सकते हो? वहाँ तो पचास लोग मौजूद थे, इसने किसी का नाम तो लिया नहीं। नसरुद्दीन ने कहा : नाम लिया हो कि न लिया हो, पचास मौजूद हों कि पांच सौ मौजूद हों , मगर वहां उल्लू का पटृठा केवल एक था ।<br /><br />वह नेता जी ही थे ! मै अपने बेटे की कसम खाकर कहता हूँ कि वहां कोई और <span class="">दूसरा उल्लू का पटृठा </span> था ही नहीं , यह कहता भी तो किसको ?Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2814227278903459557.post-9872907243161946422009-04-17T00:05:00.000-07:002010-02-24T03:55:14.489-08:00जुते की चाहना<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhg00tQ8fEzFNnk4Kax6Pp2ULy8d_E7L2bDo0hRjZugjAvU8X-QYpzsGlK7lliPQxYYS9lw6egUZHJ-G9l-ihNErR279k7DzojBRwNWzrBKKrEL21ChXc1pH86Jah3UIbEZBPicD7TE10Zp/s1600-h/shoes.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 70px; height: 70px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhg00tQ8fEzFNnk4Kax6Pp2ULy8d_E7L2bDo0hRjZugjAvU8X-QYpzsGlK7lliPQxYYS9lw6egUZHJ-G9l-ihNErR279k7DzojBRwNWzrBKKrEL21ChXc1pH86Jah3UIbEZBPicD7TE10Zp/s200/shoes.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5325935575134469506" /></a><br /><strong>जुते की चाहना</strong><br /><br />चाह नहीं मैं नेता मंत्री के <br />ऊपर फेंका जाऊँ, <br /><br />चाह नहीं प्रेस कान्फ्रेंस में <br />किसी पत्रकार को ललचाऊँ, <br /><br />चाह नहीं, किसी समस्या के लिए <br />हे हरि, किसी के काम आऊँ <br /><br />चाह नहीं, मजनूं के सिर पर, <br />किसी लैला से वारा जाऊँ! <br /><br />मुझे पहन कर वनमाली! <br />उस पथ चल देना तुम, <br />संसद पथ पर देस लूटने <br />जिस पथ जावें वीर अनेक।<br /><br /> (श्रद्धेय माखनलाल चतुर्वेदी की आत्मा से क्षमायाचना सहित,)Rajuhttp://www.blogger.com/profile/07952756525634575006noreply@blogger.com0